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________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ७२ चक्षु दर्शन में | देखो १४. जानना १ भंग २. उपयोग १ भंग १ उपयोग । 1 उपयोग को. नं. ७१ देखो को.नं007 के ममान को.नं. १ देखो | का नं." | कोर नं. १ ममान को.नं. टेमो । को० नं०७१ परन्तु यहां चारों गलियों देखो जानना के हरेक मंग में प्रचक्षुदर्शन के जगह चक्षुदर्शन जानना २१ ध्यान मारे भंग १व्यान मारे भंग । १ ध्यान को. नं०७१ देखा। कोर नं.७१ के समान को नं०७१ देखो ! मो.नं.१ । को नं०७१ के समान को न.७१ देखो । को.नं १ जानना २२ पात्रव ५७ : ___सारे भंग । १ भंग । सारे भंग । को देखो. मो. मिथकाय योग, मनोयोग, वचटयोग १.. दै० स्विकाय योग यौ. काय योग प्रा. मिथकाय १, । बैं• काय योग, या० । कार्माणकाय योग काय योग १११ घटाये ४ घटाकर (५३) । (१) नरक-मनुष्य-रेवति में | सारे भंग भंग (१) नरक-मनुष्य-देवगति सारे भंग १ भंग हरेक में को० नं०७१ देखो | कोल नं० मे हरेक में को.नं.१ देखो ! को० नं.७१ को नं. ७१के समान को००७ के समान | जानना जानना । (२) तियेच गति में सारे भंग भंग (२) निर्गच गति में मारे भंग १ भंग ४०-४३-५१-४६-४२-13- को० नं०१७ देखने को नं. १७४०-४३-४-३५-८-३१- को० नं०७१ देखो| को००१ ५०.४५४१ के मंग-को देखो ४३-३८-३३ के भंग- । । देखो नं. ७ के ममान को.नं.१३ देखो जनाना २३ भाव ४४ सारे भंग १ भंग मारे भंग १ भंग को० नं०७१ देखो १) नरक-मनुप्य-देवगति में को० नं.७१ देखो को० नं०११) नरक-मनप्य-वाति को.नं.१ देखो को.नं. १ हरेक म देषा । देखो को० नं. १ के ममान को नं. १ के ममान ! परन्तु यहां प्रभू दर्शन के जानना जगह बभू दयन जानना
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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