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________________ स्पश १, रस १, गंध १, वर्ग १ ये ) सब मिलकर ७३ प्रकृतियों का बंध सादि मौर अध्रुव इन दो प्रकार ४७ प्र. जानना । का ही होता है। इस ७३ प्रकृतियों में ६२ प्रकृतियां सप्रतिपक्ष और १, प्रकृतियां अप्रतिपक्ष होते हैं। २४. अध्रुव प्रकृतियाँ ७३ है-जिसका बंध हर सात समय को नहीं होता है कभी कभी होता है उसको अध्रुव प्रतिपक्ष प्रकृति ११६-तीर्थकर १, प्राहारकद्विक चंध कहते हैं। वे प्रघुव प्रकृति ७३ हैं । वेदनीय कर्म के २, २, परघात १, प्रातप, १, उच्छवास १, मायुकर्म के ४, मोहनीयों में से नोकषाय ७ (हास्य-रति, अरति शोक, ये संग ११ प्र. जानना । और वेद ३ ये ७) प्रायु कर्म के ४, गोत्रकर्म के २, नामकर्म के ५८ प्रकृति (गति ४, जाति नामकर्म ५, सप्रतिपक्ष प्रकृति ६२ है --उपर के ७३ प्रकृतियों में प्रौदारिकतिक , क्रियिकतिक २, प्राहारकदिक २, से अप्रतिपक्ष के ११ प्रकृति घटाकर शेष ६२ प्रकृति संस्थान ६, संहनन ६, प्रानुपूर्वी, ४, परपात १, पानप , जानना । जिसको प्रतिपक्षी है उसे सप्रतिपक्ष कहते हैं उद्योत १, उच्छवास १, बिहायोगति २, त्रस १, स्यावर असे साता-प्रसासा, शुभ अशुभ इत्यादि। १. स्थिर १, अस्थिर १, शुभ १, अशुभ १, सुभग १, दुर्भग १, सुस्वर १, दुःस्बर १, प्रादेय १, जनादेय १, अध्रुव ७३ प्रकृतियों में से ७ प्रकृति (तीर्थकर १, बादर १, सूक्ष्म १, पर्याप्त १, अपर्याप्त १, प्रत्येक शरीर पाहारकनिक २, प्रायु ४ ये ७) वे का निरन्तर बंध काल १, साधारण शरीर १, यशः कीजि १, प्रयशः कीति १, जघन्य एक अन्तर्मुहूर्त है, और ६६ प्रकृति ों का निरंतर तीर्थकर १ ये ५०) सब मिलकर ७३ प्रकृति जानना।। बंध काल जघन्य एक समय मात्र है इसलिये हनको सादि प्रौर अध्रुव ऐसे दो प्रकार का हो बंध होता है। ऊपर के ४७ प्रकृतियों का बंध सादि, अनादि, ध्रुव, (देखो गो. क. गा० १२४-१२५-१२६) पघुव इस प्रकार चारो ही प्रकार का होता है। परन्तु
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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