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________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ५४ . संज्वलन कोष, मान, माया कषायों में ६ १४-२१-१७ के मंग भंग को० मं० १७ के को० नं. १७ के २५ २५-२३-२५-२५२३-२५-२५-२१-१७ २३-२५-२४-१६ के २४-२० के हरेक भंग में! हरेक भंग में से पर्याप्त में से ऊपर के समान | बत संज्यमन कषाय | संज्वलन कषाय ३ पटाकर घटाकर २२-२०-२२-। २२-२०-२२-२२-१ २२-२०-२२-२१-१६ १४-२१-१७ के भंग के भग जानना । मारे मंग १ मंग (३) मनुष्य गति में सारे अंग १ भंग (३) मनुष्य गति में को० नं०१५ देखो को२०१५ देखी २२-१८-१४-१०-८-- को.नं. १५ देखो कोन०१८ देखो| २२-१६-८-२१-१६१०-४-२१-१७ के मंग के मंग को० नं०१८ के २५ को मं०१८के २. २१-१७-१३-११-१३ १५-११-२४-१९ के ७-२४-२० के हरेक मंग हरेक भंग में से पर्याप्तमें से ऊपर के समान | वत संज्वलन कषाय संज्वलन कषाय ३ घटाकर व घटाकर २२-१६२२-१८-१४-१०-८ ८..२१-१६ के मंग १०-४-२१-१७: के भंग मानना बानमा (४) देवगति में . सारे अंग भंग (७) देवगति में बारे बंग १ मंग २१-२१-१६-२०-१६- को.नं. १६ देखो की.नं०१६ देखो २१-१७-२०-११-१९केको ..१९देखो को.नं.१५देखो १६ के भंग अंग को.नं. १६ को० नं० १९ के २४२४-२०-२३-१३-१६ के २४-११-२३-१६-१९ के हरेक मंग में से ऊपर के हरेक भंग में से पर्याप्तसमान संज्वलन कषाय ३ वत् संज्वलन कषाय घटाकर २१-१७-२०-१६ ३ घटाकर २३-२१-१६१६ के मंग जानना २०-१६-१६ के भंग जानना
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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