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________________ ( ४५२ । कोष्टक नं०६२ मनः पर्ययः ज्ञान में चौतीस स्थान दर्शन ० स्थान सामान्य पालाप पर्याप्त ' अपर्याप्त नाना जीवों की अपेक्षा _. -- - एक जीव के माना समय में एक जीव के एक समय में - मनुप्य गति में ये १२ गुरण जानना सारे गुण ज्यान ६ से १. गुण. १ गुण स्थान ६से १२ मे से कोई १ गुण सूचना- यहां पर अपर्याप्त अवस्था नहीं होती है। १मुग स्थान ६ से १२ तक के मुहार २जीव समास मंत्री पंचेन्द्रिय पर्याप्त ३ पर्याप्ति को. नं०१ देख १ संजी पंचेन्द्रिय पर्याप्त अबस्था जानना भंग का भन जानना मनुष्य गति में-६ का भंग को००१८ देखो १ भंग ६ का भंग जानना . ४प्राण कोनं १ देखो .भंग १० का भंग मनूष्ट गति में-१० का भग को नं०१८ देखो १भंग १० का मंग ५ मना को००१ देखो मारे भंग '४-३-२-१-१-० के भग १ भंग मारे भंगों में से कोई १ भंग ६ गति ७ इन्द्रिय जाति मनुप्य गति में ४-३-२-१-१-१ के भंग-को००१ देला १ मनुष्य गनि जानना मतृप्य गति में १ मंत्री पंचेन्द्रिय जाति जानना मनुष्य गति में.-१ त्रसकाय जानना १ योग मनोयोग ४, रचनयोग औ. काय योग ने (६) मनुष्य गतिम 16 के भग-कोल नं०१८ देखी सारे भंग योग E- भंग जानना E-के भंगों में कोई १ योग मारे भंग १-३-.-२-० के मंग, सारे मंगों में से कोई । १ वेद मानना को० न०१ देखो । ममृप्य गति में ३-१-३-३-२-२-० के भंग को०-०१८ दयों
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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