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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोप्टक नम्बर ३० अग्निकायिक जीव में नामान्य माल. पर्याप्त प्रपन नाना जी : - पं. एक जीव के नाना एक जोत्र के नाना तमय में __समय में नाना जीवों अपेक्षा जीब के नाना समय में जीव के एक समय में १ १]ग थान जसमास 17. न २ में से कोई कोई १ समास राम १ मिध्यान्य मृगाः मियात्व गुरण स्थान समास । १ समास १ समास को नं.१ के रामान - दो में से कोई १ दो में म चोई१ ले गूगण में ।२ में से कोई समास २मंग एकेन्द्रिय मुदः समास जानना र बादर अपर्याप्त भंग को. नं० २१ के समान | ४ का भंग | ४ मंगवासोच्छवान घटाकर ( ३का भंग १ले गुरग. में ३का मंग को. नं०१७ देखो मा० न०२१ दक्षो १ मंग ३ का भंग १ मंग नं.२ देसो को. नं.:१के मान | ४ का भंग ! ३ का भंग | ४ का भंग श्वासोच्छवास घटाकर () ३ का भंग १ने गुगा० में का भंग को.नं. १७ १ मंग १ भंग १ भग ४ का भंग १ भंग ४मा मंग ४ का भंग ले सुरंग में ४ चा भंग को.नं. | के समान जानना ले गगा. में १निर्यच गति मांत ! निर्यच गति
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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