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________________ २१ ध्यान 5 को० नं० २१ देख २२ सय २३ भाव ३८ को० नं० २१ देखो २४ २५ २६ चौंतीस स्थान दर्शन २४ को० नं० २१ देखो २७ 15 * ३७ ३१ ३२ २ ३३ r ३ ८ को० नं० २१ के समान को० नं० २१ के समान - ૨૪ को० नं० २१ के समान ( २२३ ) कोष्टक नं० २६ स्पर्शन सर्वलोक जानना । काल माना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना अन्तर- नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं दुबारा जलकाय जीव बनना ही पड़े । जाति (पोनि) – ७ लाख योनि जानना । कुल ७ लाख कोटिकुल जानना । १ भंग को० नं० २१ देखो सारे मंग को० नं० १ देख १ मंग को० नं० २१ देखो सत्य प्रकृतियां - १४५-१४३ को० नं० २१ के समान जानना । सख्या मसख्यान लोक प्रमास जानना । - क्षेत्र - सर्वलोक जानना ५ १ ध्यान को ० २१ देखी १ भंग को० नं० २१ देखो १ मंग को० नं० २१ देखा = को० नं० २१ के समान 20 को० नं० २१ के समान २४-२२ २४-२२ के भंग को० नं० १ के समान जसकायिक जीव में ६ मंग [० न० २१ देखो सारे भग को० नं० २१ देख सारे मंग को ० को० नं० २१ देखो माता लक्ष्य पर्यातक जीव की जघन्य अवगाहना घांगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण जन्नना और उत्कृष्ट अवगाहना (उपलब्ध न हो सकी। बंच प्रकृतियां - १०६-१०७ को० नं० २१ के समान जानना । उदय प्रकृतियां -७८ को० न० २८ के ७६ प्र० में से मातम १ घटाकर ७८ प्र०का उदय जानना । G १ ध्यान को० नं० २१ देखो १ मंग को० नं० २१ देखो, १ मंग को० न० २१ देखो एक जीव की अपेक्षा शुद्रभव से संख्यात लोक प्रमाण (काल तक जलकाय जीव ही बनता रहे) । एक जीब की अपेक्षा क्षुद्रभव से प्रसंख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक यदि मोक्ष न हो तो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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