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________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं० १७ तिर्यंच गति पातंप्यान ४. गैर ध्यान ३, (भाजा विचय, अपाय विचय, विपाक विक) ये ११ जानना ये गुगण में : गग. में ६ का भंग | का भंग ज्ञान ३ का भंग दर्गा ये का भंन जानना १ च्यान भं ? त्यान । E-E- ..." अपाय विचय, दिगाकः निचय । । ---- वेभंग । यभं ध्यान घटाकर (१) कर्म भूमि में . जानना श्लेरा में भुग में। + के नंग ---- के भंग का मन गर्नच्यान ४, ८ काभंग में में को (१) म भूमि में गैर ध्यान ।, ये ८ का ध्यान निना ने 7 गुगा० म ने रे ग म के भंग में भंग जानना का मग-पयामवद जानना का भंग | में कोई १ 7 गगाग हरे गुगा में । के भंग में ४था गुगः यहां नहीं होता ज्यान का भंग-कार के का भंग । कोई? (२) भोग भूमि में प्राना बिनय धर्भध्यान' ध्यान जानना । ले गुगा • में सेरे गगार में : के भंग जोरकर का भंग ८ का भंग पर्याप्तवन ८बा भंग ।म में कोई जानना जानना ४थ गुगग स्थान में गम्प मे १० के भंव में ८य ग ग में गगग में है के भंग में १. भंग ऊपर के .१० व भंग | कोई १ का भंग का भंग में कोई नंग में अपाय ध्यान जानदा प्राध्यान ४. ध्यान विना धर्म ध्यान गैरभ्यान ४, जोकर का छाना विनय धर्म प्यान, भंग मानना कामंग जानना : मा. में एवं गुगात में ११ केभंग में ११ भंग कर ले ११ का भंग में काई १३ भंग म विपाक ध्यान जानना : विनय धर्म ध्यान जी कर का भग जानना (2) भोर भूमि में
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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