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________________ io चौतीस स्थान दर्शन सामान्य आलाप स्थान १ गुण स्थान ४ से ७ तक के गुण O २ जीव समास १ संज्ञी पं० पर्याप्त जानना ३ पर्या ४ प्राण ५. मंज्ञा ६ को० नं० १ देखो को० नं० १ देखो को० नं० १ देखो पर्याव नाना जावों की अपेक्षा ( ६१६ ) कोष्टक नं० ८७ ३ (१) नरक गति में (२) तिर्यच गति में ४ था गुगा स्थान - गुण स्थान भोग भूमि में ४था गुण स्थान (१) मनुष्य गति में ४-५-६-७ ० भांग भूमि में ४था गुण (४) देवगति में या गुमा ० १ चारों गतियों में हरेक में १ संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जानना को० नं० १६ से १६ देखो ६ चारों गतियों में हरेक में ६ का मंग को० नं० १६ मे १६ देखी १. चारों गतियों में हरेक में १० का भंग को० नं० १६ मे १६ देखो Y (१) तरफ देवगति में हरेक में ४ का भंग को० नं० १६-१६ L एक जीव की अपेक्षा नाना समय में ४ सारे गुण ० अपने अपने स्थान के स. रेग्ष स्थान जानना प्रथमोपशम सम्पनत्य में अरर्यात एक जीव की अपेक्षा एक समय में १ पुग् अपने अपने स्थान के मारे में से कोई १ गुण जानना ? રૈ को० नं० १६ मे १६ देखी कोन० १६ से १९ देख १ भंग को० नं० १६-१६ देखी १ भंग १ मंग को० नं० १६ से १६ देखो को० नं० १६ से १६ देखो १. भंग १ भंग [को० नं० १६ से १६ देवी को० नं० १६ मे १६ देखो १ भंग को० नं० १६-१६ देवो ! नूचनायहां पर अपर्याप्त अवस्था नहीं होती है । -
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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