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________________ अवगाहना-को० नं। १६ से १६ देखो। बंध प्रकृतिया-७४-को.नं. ३ देख तबप प्रकृतियां-१०-कोन० ३ देखो। सत्त्व प्रतियां--१४७-तीर्थकर प्र.१ घटाकर १४७ प्र० का सत्ता जानना । संख्या--पल्य का असंख्यातवां भाग जानना। क्षेव-लोक का प्रसस्यातवां भाग जानना । स्पर्शन-लोक का असंख्यातवां भाग राजु को० नं०३ देखो। काल-नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त से पल्प का प्रसंख्यातवां भाग एक जीव की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त से अन्तमुंहतं तक जानना । अन्तर-नाना जीवों की अपेक्षा एक समय से पल्य का असंख्यातवां भाग एक जीव की अपेक्षा मन्तमुहूर्त से देशोन् अचं पुद्गल परावर्तन काल तक मिश्र गुण स्थान न हो सके । घाति (योनि)-२६ लाख मनुष्य योनि जानना। कुल-१०८ मास कोटि कुल ना । ३४
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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