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________________ योतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६७ प्रथमोपशम सम्यत्रत्व में १ भंग को नं. १५ देग्बोको नं०१५ देखो (२) निर्यच गति में ४-४ के भंग को नं.१७ देखो (1) मनुष्य गति में ४-३-४ के भंग का नं. १५ देखो मूचना-यहां पर प्रपोज अवस्था नहीं होता है। को0नं0 देशो | कोनं-१ खो १ गनि १ गति चारों गति जानना कोनं १ को ७ इन्द्रिय जति १ पवेन्द्रिय जाति जानना चामें गलियों में हरेक में पंचन्द्रिय जाति-नना को.नं-१६ मे १६ देखी नमकाय चार्ग गतियों में हरे में १ काय जानना को.नं. १ मे १६देवो १७ पांच | को.नं०१५-१६ देवी को.नं.75-76 दखा , है योग मनायाम ४, बचनयोग ४, 1१० वापयोग, नं कायाप ये । ११) नरक-देवनि में हरेन में ८. का भग को. नं.१६-देखो (a) यिंच नि में 16 के भंग को नं०१७ देखो (8) मनाय गान में R-6-.-. .मंग को००१८ देखो सारे भंग को० न. १७ देवी योग कोनं०१७ देखो सारे भंग | को० नं० १८ देखो योप कोल्नं०१८ देखो १बेद को गं०१ देखो को.नं. १६ देखो (१) गरकति में नपुनक बंद जानना । कोनं०१६ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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