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________________ ( ७०७ ) . २६ ] . ७ । २ । ५ ११४ १८. सादि-अनादि ध्र व-अध्रुव | ११४ । ५ । रूप चारों प्रकार का बध होने वाली प्रकृतियां - १ | १ . !: १६. अनादि-धुव-मधदरूप सीनों प्रकार का बन्ध होने वाले | प्रकृतियां - २० सादि और अध्रुव रूप दो प्रकार का बन्ध होने वाले प्रकृतियां - २१. सावि संघ प्रकृतियां - . . २२. अनादि बंध प्रकृतियां २३. ध्रुव वध प्रकृतियां २४. ध्रुव बंध प्रकृतिग . - mmm.. - - *___- - २५. स्थिति बंध प्रकृतियां । २ ।५ __- । १२० . २६. उदय म्युच्छित्ति के पहले बन्ध्र व्युच्छित्ति जिनके हावे वे प्रकुतियां . . . . २७. उदय व्युरिष्टत्ति के बाद बघ व्युच्छित्ति जिनके होवे वे प्रकृतियां १ | १० | | २८. उदय व्युच्छित्ति और बन्ध ध्युच्छित्ति जिनके एक साथ प्रद एक ही मुरण स्थान मे होता है वे प्रकृतियां | | ० १२ . २९. जिस प्रकृति का उदय । २७ । ५ | ४ होता है उसका उस हो जन्य में बध होता है एक प्रकृतियां
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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