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________________ - - --- चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६१ अवधि ज्ञान में २१ ध्यान को नं. ६० दखो २२ मारब ४८ कोनं०६० देखो को० नं.६. देखो ४४ को नं०६. देखो मारे मंग ! ध्यान । को०० ६. देखो कोनं०६० देखो को.नं.६. देखो सारे भंग १ भंग ३७ को नं०६० देखो कोल्नं०६० देखो कोनं०६० देखो सा भंग ध्यान को. नं. ६. देखो को२०६० देखो सारे भंग । मंग को० नं०६.देखो को.नं०६० देखो । सारे भंग १ भंग ३३ सारे भंग को ५० ६० देखा (१) नरक गति में | १७का भंग १७ में से कोई | उपशम बारित्र १, पर्यावद पर्याप्तवत २६-२५ के भंग कोनं०१६ देखो' ? भंग मायिक चारित्र १, को० नं० १६ के - मंयमासंयम १, २७ के हरेक भंग में में |त्री निग १. महिनाममाम । ! ये ४ घटाकर (३३) घटाकर २६-२५ के भंग । (१) नरक गति में सारे भंग जानना २५ का मंग पर्याप्तवन पर्याप्तवत् | (तियंच गति में सारे भंग १ भंग को न०१६के २७ के । ३०-२७-२७ के भंग । १७-१७ के भंग १५-१७ के हरेक भंग में में पर्याप्तवत २ | को नं.१७ के १0- कोल्न १७ देखो में से कोई १ भंग ज्ञान घटावर २५ का २९..२९ के हरेक भंग में । मंग जानना गे ऊपर के समान मनि (२) तिर्वच गति में सारे भंग १ भंग मन मे ३ ज्ञान घटाकर । भोग भूमि को अपेक्षा १० का भंग १७ के भंग में से २०-२-२७ के मंग | २३ का भंग । पर्याप्तवन | कोई १ भंग जानना को० न०१७ के २५ के || पर्याप्तवत (३) मनुष्य गति में सारे भंग १मंग । मंग में में पर्याप्तवन २ ३१-२६ के मंग १७-१७-१७-१०-हरेक भंग में मे भन घटाकर २३ का को.नं. १० के ३३-१७-१-१६-१५- कोई अंग भंग जानना ३. के हरेक भंग में से १५-१७ के मंग : (३) मनुष्य भनि में । सारे भंग १ नंग मति-१त ये : ज्ञान को.नं. १८ देखो | ८-०५-२३ के भंग १-१६-१७ के भंग | हरेक भंग में से घटाकर ३१-२८ के भंग को २०१८के ३०- पर्याप्तवत् । कोई मंग जानना २७-०५ के हरेक मंग ' में से मनि-धन ये संज्ञान
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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