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________________ चौबीस योग कषाय के, प्रमत्त गिनिये संच में ॥४॥ सप्तम अष्टम गुण-स्थान। बाईस जु मानव। नव में सोलहू नये, दस दस म्यारम में नव ॥४५॥ बारम में नव जान. तेरमें सप्त गनीजे । मन-बचके द्वय दोय, औदारिक युगल सु लीजे ।।४६।। कारिण मिल सप्त ये, तेरम गुण में जानिये। पुनि चौदम में प्रास्रव नहीं, यह मन-वच उर प्रानिये ॥४७॥ पहले चौंतीस दूजे बत्तीस, तेतिस भाव मिश्र में जान । चोथ छत्तिस पचम षटम, सप्तम में एकतीस बखान ।।४८|| अष्टम नवमें उनतीस ही जानो, दसमें तेईस कह्यो भगवान। ग्यारम में एकईस कही है, बारम में बस बीस ही जान ॥४६| तेरमें चौदह चौदहमें सेरह, सिद्ध गति में पांच ही जान । भाव त्रेपन का यह वर्णन, जिन बाणी भाषा भगवान् ॥५०॥ सात धनुष पंचशतक, नारक की नवगाहन जान । एक हाथ से धनुष पंचनात, देवों की भाषा भगवान् ।।५।। एक हाथ से तीन कोस काया, मनुष्य गति किया बखान । धनांगुल का भाग असंख्य से, तीन कोस तिर्यक् जान ॥५२॥ एकसौ एक बंध नारकी, एकसौ सतरा तिर्यंच की जान । एकसौं बीस मनुष्य को जानो, एक सौ चार देवकी भान ॥५ मनुष्य तिथंच लब्ध्य की जानो, एकसो नव कहे भगवान | भोगभूमि को बंध प्रकृति, मिला नहीं प्रलय बखान ||५४|| उदय छ्यंत्तर नारक कहिये एक सौ सात तिर्यंच की जान। मोगभूमि तिमंच उन्नासी, सध्य तिर्यंच इकत्तर जान ||५|| एकसौ दोय मनुष्य बतायो, भोगभूमि में प्रयासर जान । मनुष्य गति लटध्य इकत्तर, जिन वाणी में किया बखान ॥५६॥ देवगति में उदय प्रकृति सतत्तर, बाणी में मिलता बखान । चारों गति उदय की हानि, करम काट पहुंचे निर्वाण ।।५७|| नरक-तियंच-देवगति की, सस्व सौ सेंतालीस जान । मनुष्य गति एक सौ भइतालीस, सब की सब भाषी भगवान् ॥५८|| नरक-मनुष्य-देव को पसंख्यात, अनन्त संख्या तिर्यंच की जान । अन्तर भेद बहुत से भाषित, इसी ग्रन्थ में किया बखान ।।५।। तरक-देव-मनुष्य जीवों का, सनाड़ी है क्षेत्र महान् । तिथंच जीव सर्वलोक में, जिन वाणी भाषा भगवान् । ६०॥ नरक स्पर्शन छ राजु, समुद्घात मारणान्तिक जान। देवगति का तेरह राजु, शक्ति के प्राधार बखान ॥२१॥ तियंच-मनुष्य सम्लोक स्पर्शन, समुदुघाल मारणांतिक जान ।
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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