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सांपराय, सूच्छम दसे,
ग्यारमतें जु भयोग तक। इक यघाख्यात ही जानिये,
ये संयम सुखकर अधिक ॥२७॥ पहले दूजे दोय,
प्रचक्षु-चक्षु भनीजे। प्रयतें बारम तई,
अधियुत तीन गनीजे ॥२॥ केवल सेरम-चौद,
और षट लेश्वा चतु लग। पचम-पष्ठम-सप्त,
तीन शुभ लेश्या हर अध ॥२६॥ फिर अष्टम ते सयोग तक,
एक शुक्ल लेश्या ही कही। गुरण चोदहें सब नाश कर,
जाय सिद्ध पदवी लही ॥३०॥ पहले भव्य-प्रभव्य,
द्वितीयत भव्य चौदम तक। प्रयगुग्ण के जो नाम,
तहां वोही सम्यक इक ॥३१॥ चतुपा षट सत माहि,
क्षय-उपशम मम देदक । वसुते ग्यारम तई दोय,
___ उपशम और क्षायिक ॥३॥ शेषन क्षायिक ही कही,
सनी-असनी मिथ्यात में। गुरुग दूजे तें बौदम तई,
इक सैनी ही सुखपात में ॥३॥ ( छन्द-सर्वया तेईसा) पहले दूजे हार-अनहारक,
तीजे हारक चौये दोय। पचमते बारम तक हारक,
तेरम हार-प्रनहारक होय ।।३।। सौदम इक अनाहार गनोजे,
गुरण-स्थान चौदह इमलीजे।
काय रहित भये जो सिद्ध,
चरनों में उनके शिरजेशा
(छन्द-छप्पय ) पहले-तुजे दर्श दोय,
कुमान तीन है। मिश्र माहि जय दर्श.
ज्ञान पुनि मिश्र तीन है ॥३६ । चतु पन षट विज्ञान,
तीन शुभ दशं बखानो। षटतें द्वादश तई,
सप्त मनः पयय जानो॥३०॥ तेरम चौदम दोय है,
केवल दर्शन-जान युत । फिर अघातिया हान के,
पायो पद अति अदभुत ।३।। पहले दूजे प्रष्ट,
मार्त-रौद्र के जोय। मिथ माहि नव जान.
धर्म का एक मिलोय | | पुनि वृषके दोय भेद,
मिले दस चतु गुण-स्थानो ! पंचम त्रय वृष मिले,
एकादश सब पहिचानो।।४।। षट प्रारत त्रय धर्म चउ,
सब चर ग्यारम लग शुक्ल । बारम तेरम पुनि चौदमें,
क्रमतें शेष त्रिक शुक्ल ॥४॥ पहले पचपन कहे,
पाहारकद्विक बिन जानो । पंच मिथ्यात्व जु बिना
द्वितीय पच्चास बखानो ।।४।। तीजे मिश्र जु माहि,
तीन चालिस ईखानो। प्रअत गुरण जिहिं नाम,
चतुम चालिस छह जानो। ४३.! योग कषाय जु पूर्ववत् ,
अबत म्यारह पंच में।