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________________ छट्टे तें चोदम लग कही, मानुष गति क जानो सही ॥१०॥ इन्द्री पांचों मिध्यात, दुजे ते चौदम लग जात ६क पंचेन्द्री जिनवर कही, दम इद्रिय वर्णन वर ।।११।। पहले गुरण पट काय जु लसे, दुजे तें चोदम नस बसे । पहले दूजे तेरह योग, शरकदिक विन जान वियोग ||१२|| तीजे में दस इमि गिन लाय, मन वच अष्ट मोदारिक काय । वैीयक मिलन दस भये, चौथे प्रमोद पहिले कहे ॥ १३ ॥ पंचम में मन वर्ष बसु जान, और प्रौदारिक मिल नव स्थान । प्रस में एकादस योग, हारकडिक गुत जान नियोग ॥ १४॥ सनम तें बारम लग जान, नव पंचम जान सुजान । तेरम जोग सप्त निराधार, धनुभय-सत्य वचन मन चार ||१५|| श्रदारिक श्रदारिक मिश्र, कारण मिल सुप्त जो दिख चोदम गुण स्थान धयोग, काट संसार मोक्ष सुख भोग ||१६|| वेद प्रथम ते नव लग सोन. आगे वेद न जान प्रवीन । वेद रहित जो भये प्रवीन, ( ६८८ ) मोक्ष सुखों में ये हुये लीन ।। १७ ।। अब कषाय को वर्णन करो, गुण स्थान भिन्न मिश्र उभरो। यही संसार का विष महान्, इसको ही त्याग भये भगवान || १८ || छन्द-छप्पय पहले जे सर्व मिश्र, इकोस भनी । चौथे हू इकत्रीस चौकड़ी, प्रथम न लीजे ॥१२॥ प्रत्याख्यान बिना, देश संयम में सतरा । प्रत्याख्यान बिना तेरषद्, सन वसु इकरा ॥२०॥ नव में गुण सब सात हैं. संज्वलन श्रये वेद भन । दसमें सूम लोभ इक आगे हीन कषाय गन ।। २१ ।। प्रथम द्वितीय कुज्ञान, तीन वीज सुमते भन ये तीन सुजान, पंचम में भी इमिगन || २२ || ते द्वादवा स ज्ञान केवल बित चारो । तेरम-चौदन मुख स्थान, केवल इक बारो॥२३॥ इहि विधि मुख पर ज्ञान को, कथन कहो जगदीश ने । अब संयम रचना कहूं. जिमि सुतर भावी जिने ॥ २४ ॥ पहले तें चतु लगे, श्रसंयम ही इन जानो । पंचम-संयम देश छठें, सप्तम इम भानो ॥ २४५॥ सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धी अष्टम-नम गुरु दोय, 1 नाहि परिहारविशुद्धी ||२६||
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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