SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 340
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । ३०५ ) कोप्टक नं०४५ चौतीस स्थान दर्शन कर्माण काय योग १ वेद को-401 १२ कपाम पोर नं. १ देखो । (२) तिर्यंच गति में भंग ३-१-३-१-३-२-१के अंग कोनं०१७ देखो को देखो को० नं०१७ देखो (8) मनुष्य गति में सारे भग ३-१-०-२-१ के भंग नं.१- देखो | को- यो । को न देखो (४) देव मति में न मार भग सारे भग २-१-१ के मन को न०१६ देखो का न: १६ देखो को.नं.१६ देखो २५ सारे भंग (१) नरक गति में अपने अपने स्थान केमारे भय अपने अपने स्थान के सारे २३-१६ के भंग को नं. ११. देखो | वो० नं० १६ देवो भंगों में से कोई भंग (6) निर्वच गति में सारे भंग भंग २५-२३-२५-५-२३-५-२४-१६ कोनं १२ देखो ! को नं०१७ देखो के. भ. को नं०१६ के समान जानना (३) मनुष्य गनि में मारे भंग २५-११-०-२४-१६ के भंग नं१८ देखो | फोनं १- दवो को० न०१८ के ममान जानना १४) देव गति में मारे मंग २४-२८-१९-३-18-६ मंग मो.न. १६ देखो को० नं०१६ दन्त्री का० नं. १६ के ममान जनना सारभंग १जान 18) नमः गति में को न.१८ देवो . को नं १६ देखो १-2 के भंग को०१६ देखो (२) तिर्यंच गति में १ज्ञान २-:-: के भंग को० नं. १७ देखो को.नं. १७ देखो का० नं. १७ देखो (3) मय गति में मारे भंग १ज्ञान २-4-7-2-1 के भंग को देखो को.नं. १८ दंघी को नं०१८ देखो (४)देव गति में मार भंग जान २-२-:-३ के भंग को० नं०१६ देखो को० नं. १९ देखो को नं. १६ ददो १प्रसयम १पसंयम । (१) नरक, तिर्थच. देवगति में हरेक में को नं० १६-१०-१६ देखो कोन १६-१७ १६ देखो १२ जान कुमाथि जान १. मनः पर नान ये घटाकर दोष जनन्दा १३मयम प्रसंगम, यथास्थान
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy