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________________ १ चौंतीस स्थान दर्शन २१ भाव २ ५३ को० नं० १८ देखी ( २५४ ) कोष्टक नं० ३५ ३ जिसका विचार करना हा वो एक योग जानना | २ भोभूमि में १ से ४ गुण स्थानों में ४२-३७-३३ के भंग-ऊपर के कर्मभूमि में ४३-३० -२४ के हरेक भंग में से एक नपुंसक वेद घटाकर ४२-३७ ३३ के मंत्र जानना । (४) देवगति में-४२-६७-३३-४१-३६-३२ के भंग श्रवनत्रिक देवों से १६वे स्वर्ग तक देवों में १ल गुग स्थान में ४२ का भग-मान्य के ४२ के भंग में से नपुंसक वेद १ घटाकर शेष ४२ का मंत्र जानना २ रे साम्रादन गुण • में ३७ का भंग-ऊपर के ४२ के मंग में से मिध्यात्व ५ घटाकर ३७ का भंग जानना ये गुगा स्थान में १३ का भंग-ऊपर के ३० के भंग में से अनंतानुबंधी काय ४ घटाकर ३० का भंग जानना २. नवरों वेयक के देवों में १ से ४ गुरम स्थान में ४१-१६-३२ के मंग- ऊपर के ४२-३७-३३ के हरेक भाग में से एक एक स्त्री वेद घटाकर प ४१-३६-३२ के भंग जानना ६. नव अनुदिस और पंचानुनर के देवों में(यहां एक ४ या गुगा ही होता है) ४ गुगा स्थान में ३२ का भंगार के ३२ के भंग में से एक स्त्री वेद घटाकर ३२ का भंग जानना ५.३ चारों गतियों में हरेक में को० नं० २६ के समान भंग जानना सारे भंग अपने अपने स्थान के सार मंग जानना को० नं० १८ देखो सत्य मनोयोग या अनुभव मनोयोग में ५ १ भंग अपने अपने स्थान के सारे अंगों में कोई एक भंग जानना 9-19-5
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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