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________________ २७ २६ ३० ३१ ३२ ३३ १४ ( १७१ ) (६) नव अनुदिश और पंचानुत्तर विमान के देवों पर्याप्त अवस्था में नव वेयक के ७६ प्र० में से मिथ्यात्व १, सम्पमिथ्यात्व १, धानुका ४, ये ६ घटाकर ७० प्र० उदय जानना । ६९ (१०) नव अनुदिया और पंचामुत्तर विमान के देवों में अपयांत अवस्था में पर्याप्त के ७० प्र० में से उच्छवास १० काययोग २ घटाकर और मिथकाययोग १ जोड़कर ६६ ० का उदय जानना । सूचना- नवदिश और पंचानुत्तर विमान में ये सब जीच सम्यग्ट्रॉट ही होते हैं। ด सत्य प्रकृतियां– १४७ (१) भवनकि देव मे १९ वर्ग तक के देवों में र्विचायु १ घटाकर १४७ प्र का सत्व जानना । १४६ (२) १३६ स्वर्ग में सभं सिद्धि तक के देवों में गरका १ तियं वायु १ ये २ घट कर १४६ प्र० का सत्ता जानना । १४६ (६) भवनत्रिक देवी और कलवानी देवियों में तीर्थंकर प्र० १, नरकायु १ ये २ घटाकर १४६ प्र० का सत्ता जानना । संख्या असंख्यात क्षेत्र जलना क्षेत्र- लोक का अयातयभाग प्रमाण जानना । स्पर्शन (१) सातराजु लोक का पता मांग प्रमाण जानना । (२) अठाराज - १६ वे स्वर्ग का देव हरे नरक तक उपदेश देने के लिये माते है अपेक्षा | (३) माग सर्वार्थ सिद्धि के प्रमीन्द देव मारणांतिक समुद्घात में मध्य लोक तक अपने प्रदेश को फैल सकते हैं, इस अज्ञानता। काल- नाना जीवों को प्रांपेक्षा सर्वकाल एक जीव की अपेक्षा दस हजार वर्ष से लेकर ३३ सागर का काल प्रमाण जानना । अन्तर—ताना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं एक जीव की अपेक्षा अन्तर्मुह तक नियंच या मन पर्यान में रहकर दुबारा देव बन सकता है अथवा संख्या पुद्गल परावर्तन काल तक भ्रमण करके यदि मोक्ष न गया हो तो इतना भ्रमा करने के बाद फिर जरूर देव बनता है। जाति (योनि) - ४ लाख योनि जानना । कुल – २६ लाख कोटिकुन जानना ।
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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