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________________ २६ ७२, (१२) ननादित मोर पंगाट विमान प्रथा में-ज्ञानावरणीय , दर्शनावरणीय ६ (३ महानिद्रा घटाकर) वेदनीय १, पप्रत्याख्यान-प्रत्याग्यान-मज्वलन कपाय १ः, हाम्यादिक नोकषाय ६, पुरुष बंद १, मनुष्य द्विक २, मनुष्यायु १, वा, अन्तराय ५, नामकर्म प्र० ११ (पंचन्द्रिय जाति १, निर्माण : प्रो० शिक२. संजस कामगि गरीर २: समचतुरसमस्थान १, दनपभनागमहनन १. म्पर्शादि ८, अगर न १, उद्यात. परपात १. वाम १. प्रगम्नचिहावांगति १, प्रत्यक १. बादर १, श्रम, मि, मुभग १, स्विर १, अस्थिर १. शुभ ?. अशुभ १. नुम्बर १ मादय १, यमः कीति !, अयश: कानि , नांधकर प्रकृति से ३१) ये ७० प्र० का बंध/जानना । (१३) नन पदिश और पंचानुत्तर विमान के देवों में-ऊपर के प्रतनिषों में से मनुष्याग् घटाकर पायांन अवस्था में प्र० का बंध जानना। बय प्रकृतियां-७७, (१) सामान्य याला पर्याप्त अवस्था के देवों में-जानावरणीय ५, ददानावरपाय ६(३ महानिद्रा घटाकर वदनीय २, मिथ्यात्व, मम्पग्मिभ्याल-नम्यक प्रति ३. कपाय १६, हाम दि नोकपाय ६, स्त्री-पुरुष वेद २, देवढुिक २, देवासु १, उच्चदंत, अंतराय ५, नामनाम प्र०२८ (पंचेन्द्रिय जाति, निर्माण ६. यक्रिकद्रिक २, जस-काारण शरीर २, समचतुरमसंस्थान १, स्पादि ४, हानुरु लघु १. उपघात १, परघात १. वामांच्द्रवाम १, प्रशस्तविहायों मति १, प्रत्वक १, बादर १, स १, पर्यात १, सुभग १, स्थिर । अस्थिर १, शुभ १, अशुभ १, सुस्बर १, ग्रादय १, यश: कोलीये २८, ये ७५ प्र० का उदय जानना । ५६ १२) मामाग्य मालाप प्रपयां: अवस्था के देवा म-ऊपर के 93 में से उच्छवास १, वैक्रियक काययोग १ ये घटाकर पौर मिश्र काययोग,जोवर '5६ प्र० का उदय जानना। ७ ) भवनत्रिक देव और वे स्वर्ग नक के देव के स्त्री वदो वे पर्याप्त अवस्था में कार के सामान्य के ७० में से स्त्री वेद १ पटाकर ७.प्र. का उदय जानना। ७६ (6) मवत्रिक देव पौर १६वे स्वर्ग नक के देव के पुरुप वेदो में पर्या अवस्था में ऊपर के सामान्य के ७७ में से पुरुष वेद घटाकर ७६ प्र० का उदय जानना ! ७५ () भवनत्रिक देव और १६व स्वर्ग तक के पुमा वही देव के प्रपयांत अवस्था में सामान्य 35 में से उच्छवास १, वै० काययोग १ : घटाकर मोर 20 मिथकाय यंग जोरकर '३५ प्र. का उदय जानना । ७५ () भवनपिक देव पौर. १५वे म्बर्ग तक के स्त्री बेदी दंव के अपर्याप्त अवस्था में-पुरुष बेदी के ७५ में से पुरुष वेद घटाकर शेष ७४ में स्त्री वेद जोड़कर ७५ प्र० का उदय जानना। ७६ (७) नवग्रं वेयक के देवों में पर्याप्त अवस्था में पुरुष वेदो में सामान्य से ७७ में में स्त्री वेद १ घटाकर ७६ का प्र. का उपय नानना। ७५ () नव वेयक के देशों में अपर्याप्त अवस्था में पुरुष ने दो ही होते है इसलिये ऊपर के पर्याप्त के ७६ में से 20 काययोग १, वासोच्छवास १ये २ पटाकर प ३४ में 40 मिश्र काययोग जोरकर ७५ प्र.का उदय जानना ।
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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