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________________ ( ४२ ) कोष्टक नं०५६ चौंतीस स्थान दर्शन कुअवधि ज्ञान (विभंग ज्ञान) में २३ भाद कोनं०५८ देखो कोर नं. १६ देखो मारे भंग १ मंग कोनं०१७ देखो मारे भंग () नरक गति में | को० नं०१६ देखो २४-२२-२३ के मंग को० नं. १६ के २६. २४.२५ के हरेक मंग में मे कुमति-श्रत ये २ कुजान घटाकर २४-२२-२३ के भंग जानना । (२) नियंच गति में २६-२७-२८-२५-२३-२४ के भंग को नं.१७ । को गं०१३ देखी के ३१-२६-३०-२७-२५-२६ के हरेक भंग में । से ऊपर के समान २ कृज्ञान घटाकर २६-२७ २८-२५-२३-२४ के भंग जानना (२) मनुष्य गति में सारे मंग २६-२७-२८-२५-२३-२४ के मंग को० न०१८ कोनं०१-देनी के ३१-२६-३..२७-२५-२६ के हरेक भंग में में ऊपर के ममान : कुज्ञान घटाकर २६-२७- | २८.२.२.२४ के भंग जानना (1) देव गति में 212107-२५-२३-२४-२२-२०-२१ के भंग को न०१६ दना को० नं. १६ के २५-२३२४.२३-२५-२६- । २-२२-२३ के हरेज भंग में में ऊपर के। ममान : जान पटाकर २५-२१-२६.२५-२३२४-२२-१०-२१ के भंग जानना %3 १ भन को नं०१८ देखो । सारे भंग ! भंग को नं०१६ रखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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