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________________ कोष्टक नं० ३६ अनुभय वचनयोग में चौतीस स्थान दर्शन | स्थान सामान्य ग्रालाप पर्याप्त अपर्याप्त नाना जीवों की अपेक्षा एक जीव के नाना समय में एक जीव के एक समय में गुण स्थान १ से १३ तक के गुण सूचनायहा पर अपर्याप्त अवस्था नहीं होती है। २ जीव समास वीन्द्रिय, जान्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंन्नीपंचेन्द्रिय, मंजीपंचेन्द्रियपर्याप्त ये ५ जानना ३ पयाप्ति को नं०१ देखो १ मंग सारे गुण स्थान १ गुण स्थान चारों गतियों में अपने अपने स्थान के समान अपने अपने स्थान के | अपने अपने स्थान के १ से १३ तक के गुण में जानना सारे गुण स्थान जानना गुरण में से कोई १ . को० नं०२६ देखो। गुण जानना १ समास समान चारों गनियों में हरेक में ५ मे से कोई १ समास | ५ में मे कोई १ समास १ संज्ञापंचन्द्रिय पर्याप्त जीव समास जानना | जानना जानना को० नं०१६ सं १९ देखो, शेष ४ ममाम निर्वत्र गनि में जानना, को.नं. १७ देखो ६-५ १ भंग ६-५के मंग ६-५के मंगों में से कोई ६-५.के भंगों में गे कोई चारों पतियों में हरेक में १ भंग जानना १ भंग जानना का मंगको० नं. १६ मे १६ देखो (२)तिपंच गति में ५ का भंग को.नं. १७ के समान सारे भंग १ मंग 10-1- ७-६-४-१० के भंग : अपने अपने स्थान के | अपने अपने स्थान के चारों गति में हरेक में सारे मंग जानना सारे भंगो में से कोई? १० का भंग-को० नं०१६ से १६ देखो भंग जानना (-) तिर्यच गति में E---, के भंग को मं० १.देखो (३ मनुष्य गनि में ४ . मंग-को००१८ देखो ४प्राण को० नं०१ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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