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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक ०१ मिथ्यात्व गुरु स्थान में को नं. १७ देखो । ग्रहस्था ५. - - - - - १८सनी १ भंग १ भग प्रसंजी, मंजी (१) नरक, मनुष्य, दंवगति में | कोड नं.१६.१-कानं०१६-१८- (१) नरक, मनुष्य, दत्र- की नं. -१८. कोः नं.१६. हरेक में १६ देषो । १६ देगी गति में हरेक में दो १-५१ दवा १ मंदी जानना को जानना कानं० १६१८-१६ देखा कोन 15-2: देखा । (२) निर्यच गति में १ भंग । १ मंग (२) निर्यच गनिमें भंग । मंग १-१-१ के मंग को० नं0 लो कोनो १-१-१ के भगको नं. १ को १७ देखो को १७ देखो १६ ग्राहारब आहारक, अनाहार | चारों गनियों में हरेक में थाहारक । माहारवा चारों गतियों में हरेक में । को नं०१६ से कोनं १ मे १ अाहारक जानना १-१ के भंग १६देखो . | को० न०१६ से १६ देतो को० नं.१६ से १६ देदो २० उपयोग १ भंग १:पयोग १ भंग | उपयोग शानोपयोग ३, (१) नरक गति में हरेक में को०१६ देवों को०१६ देखो अवधि शान पटाकर ( दर्शनोपयोग २, ५ का भंग (१। नत्र गनि में को. नं० १६ देशो की नं.१६ देख वे ५ उपयोग जानना को न०१६ देखो : ४ का मंग (२) निर्यन गति में १ भंग १ उपग को नं.१६ देखो ३-४-५-1 के मंग को० नं०१०चो को००१७दखा () नियंच गनि में १ भंग १ उपयोग का न. १७ देतो २-४-४-४ के भंग का० न०१७ देगयो कोनं १७ देखो (2) मनुश्य गति में १ भंन । १ उपयोग कोल नं: १७खो ५-2 के भंग को.नं. १८ देखो कोल्न- १८ देखो (1) मनुप्य गति में सारे नंग । १ उपयोग को० नं० १८ देखो ४.४ के भंग कोः ०१ देखो कोन०१ देखो (४)य गान में भंग १ उपयोग को नं. १८ देखो । ५ का भंग को० नं० १६ देखो बोन१९ देखो (4) देवगति में मंग ।। उपयोग को० नं०१६ देखो के भंग को२०१६ देखो को२०१६ देखो २१ ध्यान को नं० १६ देवो । (१)शातध्यान ४, १ भंग १ ध्यान : : भन ध्यान (रष्टवियोग, मनिष्ट | (१) चारों गतियों में हरेक में । को० नं०१६ से | कोनं १६ से (१) चारों गलियों में हरेक में को: ०१६ से कोन०१६ से सयोग, पीड़ा चितन, ८ का भंग १६ देखो ११ देखाएका भंग १६दंडो १६ देखो को नं० १६ से १६ देखो। को.नं. १६ से ११ देखो'
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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