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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोटक नम्बर ३५ _ । २४८ ) कोष्टक नम्बर ३५ सत्यमनोयोग या अनुमय मनोयोग में सत्यमनोयोग या अनुभय मनोयोग में | स्थान | सामान्य पालाप पर्याप्त अपर्याप्त माना जोबों की अपेक्षा एक जीव के माना समय में । एक जीव के एक समय में १गुण स्थान १३ १ से १३ तक के मुभा० सूचना। यहां पर अपयत भवस्था नहीं होती है। २ जीव समास ३ पर्याप्ति कोनं.१ देखो माप्ति ४ प्रारा १० को० नं. १ देखो । सारे गुमा स्थान १गरण चारों गतियों में अपने अपने स्थान के | अपने अपने स्थान के एक से १३ तक के गुण स्थान अपन अपने स्थान सारे गुण गुग में से कोई के समान जानना को नं.२६ देखो गुण. १ संजीपंचन्द्रिय पर्याप्त चारों गतियों में हरेक में - जानना को न००६ देवो १ भंग १ मंग चारों गनियों में हरेक में ६ का मंग जानना का मंग जानता ६ का मंग को न० २६ के ममान जानना १ मंग भंग चारों गतियों में, हरेक में ' अपने अपने स्थान के प्रान अपने स्थान के १० का मंग की.नं.१६ से १६ देखो एक एक भंग जानना।एक एक अंग जानना सारे भंग अंग (2) नरक-निवंच-देवगति में हरेक में अपने अपने धान के | अपने अपने स्थान के ४ का मंग को० नं.१५-19-१६ दंग्यो । नारे भंग जानना | एक एक भंग जानना (२) मनुष्य गति में ४-३-२-१-१-- मंग को. नं.१के अग्न प्रारम्थान के समान जानना । गारे भंगों में से कोई (२) भोगभुमि में १ भंग जाना | ४ का भंग की नं०१७-केमभान जानना पनि चारों गनियां जानना चागे में कोई। चारों में से कोई : गनि ४ ५ संजा को० नं०१ देखो ६गति १गति को० नं. १ देखा गति
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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