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________________ भाग २ भाग ३ भाग ४ भाग ५ भाग ६ भाग ७ € भाग १ भाग २ भाग ३ भाग ४ भाग ५ ६० सा ११ उपयांत मोह १२ क्षीण मोह १३ सयोग के० १४० . ३० १ १ 1 १ १ १६ १२० ( ७३३ ) इस भाग में नहीं होती। " " "P او او तीर्थंकर प्र० १, निर्माण १ प्रशस्त विहायोगति १ पंचेन्द्रिय जाति २ तैजस-कार्मारण शरीर २ बाहारकडिक २ समरसंस्थान है, देवगति १ देवगरमा १ त्रिविकडिक २ स्पर्शादि ४ गुरुलघु १, उपवात १, परघात १, उच्छवास १ स १, बादर १, पर्यास १, प्रत्येक १ स्थिर १, घुम, सुभग १, सुस्वर ११, २० हास्य रति भय-जुगुप्सा २ वे ४ । " पुरुषवेद १ की व्युत्ति जानना | संवलन कोष की माग १ की माया १ की " लोभ १ की ज्ञानावरण के दर्शनावरण के ४ (चक्षु ६० २. ६० १, ५, अचक्षु अवधि २०१, केवल दर्शनावर ४) यशः कीर्ति २ उच्च १. अंतराब कर्म के २. ये १६ । यहां कोई बुद्धिति नहीं होती। ן! " נן 23 rt 77 33 J " " सातावेदनीय १ की व्युच्छित्ति जानना । वहां बन्ध भी नहीं तथा युति भी नहीं होती। बन्धयोग्य प्रकृतियां, इनकी व्युच्छित्ति ऊपर लिखे अनुसार जानना
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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