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चौतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नं०१७
तियन गति
१ काटक। और अनुभव वचन वोग ये: जारकर : का
भग जानना
का भंग वीनिय जीद . जपर के मग में . पबिग्न की जगह गिनकर
हिमक का धारणेन्द्रिय विषय : जोरकर) ३६ का मंग
भंग में अग्नि ८ को जगह है गिनकर ३६ का भग
जानना ० का भग रिन्द्रिय ' जोव में ऊपर + + के भग म अविग्न को जगह १. गिनकर ४० का भंग
जानना
४३ का भग अगंजी पत्रन्द्रिय जीव में ऊपर के ४० के भंग में । अविरत १० की जगह ११ गिनकर और स्त्री पुरुष वैदये जोड़कर . का भंग
४४ का भंग संधी पंचेन्द्रिय जीव में : जपर के . के मंग में। अचिरत ११ की जगह १२ ' ! मिनकर ४४ का ग
जानना
४० का अंग चरिन्द्रिय जीव में ऊपर कई के भंग में । यविरत है की जगह १० गिन
कर (दिसक का चक्षुरिन्द्रिय । विषय जोड़कर) 10 का। भंग जनना
४३ का भंग प्रसंगी पंचे। जीवम ऊपर के . के भंग में अविरत १० के जगह ११ । मिन पर (हिसक का कर्णन्द्रिय : विषम १ जोड़कर और स्त्री पुरुष बंद : जोड़कर ४३ फा भंग जानना
५१ का भंग गंजी पंच जीव मिथ्यात्व ५ प्रविग्न १० (हिमक के विषय हिस्य ६) रूपाय २५, बनियांग ४, मनोयंांग४, मौ. काययांग १ ये २१ का भंग जानना
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