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________________ ( ७६६ ) • ऊपर के पांच नियत कालों के स्वामी निम्न प्रकार (१) समुद्घात के करने (प्रसरण में) में अथवा जानना __ संकोचन (समेटने रूप) में अर्थात् दो समय में प्रौदारिक १. लब्ध्यपर्याप्तक जीवों में अपर के पहले ही शरीर पर्याप्ति काल है । काल रहते हैं। १३) कपाट समुद्घात के करने और ममेटने रूप. .. एकेन्द्रिय जीवों में ऊपर के पहले के चार काल युगल में औदारिक मिथ शरीर काल है । रहते हैं। (.) प्रतर समुद्घात के करने और संकोचन में श्रीर ३, प्रस जीवों में ऊपर के पांचों ही काल रहते हैं। लोक पूर्ण समुदात में कार्माण काल है। ४. पाहारकशरीर में ऊपर के पहले के काल छौड़ इस प्रकार प्रदेशों के विस्तार करने पर पारीर कर शेष मागे के ४ काल जामना । पर्याप्ति काल, मिथ शरीर काल, कार्माण काल ये ही काल होते हैं ऐसा जानना चाहिये, किन्तु श्वासोच्छ्वास ५६. स दुधात फेवली के काल का प्रमाण- और भाषापर्याप्ति समेटते समय ही होती है, क्योंकि मूल समुद्घात केवली के कार्माण, औदारिक मिश्र शरीर में प्रवेश करते समय से ही संनी पंचेन्द्रिय की औदारिक शरीर पर्याप्ति, श्वासोच्छवास पर्याप्ति काल । तरह क्रम से पर्याप्ति पूर्ण करता है इसलिये वहाँ (ममुद् इस प्रकार पांघ काल क्रम से अपने प्रात्म प्रदेशों का · घास केवली के) पांचों काल सभव हैं। संकोच करने (समेटने) के समय ही होते हैं और प्रसरण समयास केवली के ८ समय और योग के कोष्ठक अर्थात् विस्तार (फैजाने के समय तीन ही काम्न है। नं. १६८ । प्रसरण विस्तार योग औदारिक काय योग (१) दंड समुद्घात (२) पाट , (३) प्रतर ॥ (४) लोक पूर्ण, औदारिक मिश्र काय योग कार्माण का योग कामरिण ऋाय योग संकोचन समेटने रुप योग कार्माण काय योग औदारिक मिश्रकाय योग मीदारिक. काय योग (५) प्रतर (६) कपाट (७) दंड (८) मूल शरीर प्रमाण (देखोगो का मा०५८६-५८७) श्रीपारिक काय योग
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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