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________________ सूचना-१६ नं. पाहारक के छठे स्यन में याहारक मि काय योग में अनाहारक अवस्था भी होती है। अवगाहना-३॥ हाथ से ५२५ घनुप ना जानना । बंध प्रतियां-६-७-८-६ के गुगल में कम मे ८ ३-५.६-2.८.२०प्र० का बंध जामना । को ०६म देखो। अदय प्रकृतियों ८१-७-१२-६६ प्र. का बंध जानना । सस्व प्रकृतियां-वे गुग में १४६, ७वे मुग में १४६ या १३६, वे गुगण. में १४२-१३९-१३८, ९ वे गुगण में १४२-१३१.१३८ प्र.का सत्य जानना । को नं०६ मे है देखो। सख्या-(८६२६६१०३) जानना । विशेष कुलासा को नं. १ मे है देखो। क्षेत्र-लोक का असंख्यातवां भाम जानना । म्पर्शन-लोक का प्रस्थान या भाग जाननना। काल--नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की अपेक्षा ८ वर्ष अन्नमुहर्त कम एक कोटिपूर्व वर्ष तक जानना । अन्तर–नाना जीबों को अपेक्षा काई अन्तर नहीं। एक जीच की अपेक्षा अन्तमुहूर्त में देशोन् अर्व पुदगल परावर्तन काल तक सामायिक दोपस्थापना संयम न हो सके। जाति (योनि)-१४ लाय मनुष्य योनि जानना। कुल -४ लाम्य काटिबुल मनुष्य को जानना ।
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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