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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक २०६६ सामायिक-छेदोपस्थापना संयम में २२ अाम्रव | सारै भंग ! १ मंग | सारे भग १ भंग योग ११, कपास १३ | (१) मनुष्य मति में मो००१८ देखो। को नं०१८ | कपाय, हास्वादिनी : य २४ जाना २२.२०-२२१६-१५-१४. देखो कपा ६, पुरुष-बेद . १३.१२.११-१० भंग माहारक मिथकाय यांग : को० नं०१८ देखो १ ये जानना (१) मनुप्य गति मे ० ०१ देशो को न १ का भग-को० नं पंखो १८ देखो २२ भाब | सारे भंग १ भंग सार, भंग १ मंग उपशम-शयिक स. १) मनुप्य गति में को न०१५ देखो | को० नं०१८ | स्त्री-मंद १. नपुसक. चारित्र 2-७-३१-२६-२६-६-| चंद मनः पर्ययशान १ ज्ञान ४, दर्शन । २५-२६-५-४-२३ के| घोर पाम सम्पनत्व १ | लब्धिा , बंदक सः भंग-को००१८ देखो। य ४ पर्याप्त के वे गुगा मुरागसंयम, १के भंग में में मनुष्य गति १, कपाय घटाकर (२७) जानना ४, f ग ३, शुभ (१। मनु'य गनि में की: नं. १८ देखो , कोल नं१८ सेट्या ३. प्रज्ञान , २७ का मंग-को० नं० दशा अमिनत्व १ जीरद १० देखा १. भव्यत्व १ ये जानना गुचना-य भंग पावरच मिश्रकार योग की अपेक्षा! बनता है। ना
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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