SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 726
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक २०६५ अनाहारक में २१ ध्यान को.नं. १६ देखो । । सारे भंग अपाय विचय घटाकर । १ ध्यान " को १६ देखो :१) मनुष्य गति में १ का मंग को.नं०१८ देखो - -- ( नरक-देवगति में को० नं. १६-१६ को.नं. १६-१६ हरेक में देखो - के भंग को०० १६-१६ देखो । (२१ तिर्यच गति में १ भंग १ध्यान ८-८-८ के भंग को० नं०१७ देखो को नं. १७ देखो को० नं.१७ देखो । (३) मनुष्य गति में । सारे भंग १ध्यान । ८-६-१-८-६ के भेगको० नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो को। ने०१८ देखो । सारे भंग भंग (१) मरक गति में को०१६ देखो को.नं. १६ देखो ४२-३३ के भंग को नं. १६देखो (२) तियेच गति में सारे मंग भं ग ३७-३८-३६-४०-४३. को.नं. १७ देखो को००१७ देखो ४४-३२-३३-३४-३५ । अनानव जानना २२ पास्त्रद मिथ्यात्द अविरत १२, कार्माण काययोग १ कपाय २५, ये (३) जानना के मंग को.नं. १७ देखो (३) मनुष्य बत्ति में सारे अंग भंग ४४.३६-३३-२-१-१३-को.नं०१८ देखो को.नं. १५ देखो ३८-३३ के मंग । को० ने०१८ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy