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________________ (३६४ ) कोष्टक नं० ४६ चौतीस स्थान दर्शन नपुंसक वेद में ० स्थान सामान्य मालाप पर्याप्त यपर्याप्त | एक जीव के नाना एक जीव के एक समय में समय में । नाना जीवों की अपेक्षा १जीब के नाना १ जीव के एक समय में । समय में नाना जीवों की अपेक्षा जानना १ गुरण स्थान | सारे गुण स्थान गुण । सारे भंग १ गुणात १से ६ गुग नक (१) नरक गति में 'अपने अपने स्थान अपने अपने स्थान (१)रक गति में अपने अपने स्थानपने अपने स्थान से ४ गुणा स्थान | के सारे नुग के सारे भंगों में, १ले ४थे गुरण जानना के सारे भंग के सारे अंगों में ! (8) निर्यच गति में स्थान जानना गे कोई १ गुग | सूचना-पहले नरक | जानना से कोई मुरण कर्मभूमि में | को० नं.१६-१७ स्पान जानना | की अपेक्षा या गुए | कोनं-१६-१७-! स्थान जानना १२ ५ गुग जानना । १८ देखो को नं०१६-1 जानना १८ देखो को० नं०१६(३) मनुष्य गति में १७-१८ दशो | (२) तिर्यच गनि में ।१७-१८ देखो कमभूमि में कर्मभूमि में १-२ गुगल १स गुगा, जागना (३) मनुष्य गति में | १-२ गुरग० जानना २ जीव ममास १४ १मगस १ ममाम : १ ममाय १ समास को० नं. १ देलो (१) नरक-मनुष्य गति में सभी पं० गीत | कारनं०-, (१) मरक-मनुष्य मनि पापयाम कोन१६ मजी पननिय पाप्त को ने०१६-१८ | १८ देखो में-१ संडी पंचेन्द्रिय को० नं १-१ । १८ देखा को.नं. १६-८ देखो देखो | अपर्याप्त प्रवस्था दी । (२) निर्वच गति में मनान गास | जानना माग - १ समास 13--1 के भंग चो० नं. ७.१ के भंग में फा००१३ | को न०१६-१८ देखो को न.१७ देसो जो० नं.१७देखो १७ के गमान जाना | कोई समान देसो (२) निर्गच गदि में । का००१० देग्नी! ७- के भग-को० नं. पर्याकि को. नं०१ देखो भंग १ भंग (१) नरक-मनष्य गति में हरेक में का भंग | को० नं०१६-। तीनों गनियों में हरेक में ' का भंग ३ का भंग ६ का भंग-को नं० १६.को० नं०१५-१८१८ देखो ३ का भंग को.नं. १६. को० नं०१६-१७ को० नं०१६१८ देखो | १७-१८ देखो देखो . १४-१८ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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