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________________ कोष्टक नं. ८४ क्षयोपशम सम्यक्त्व में चौतीस स्थान दर्शन *० स्थान सामान्य बालाप पर्याप्त अपर्याप्त एक जीब के नाना एक जीब के एक । १जीब के नाना एक जीव के समय में ! गभय में | नाना जीनों की अपेक्षा । समय में एक समय में नाना जीव की ना १गुरण स्थान । मारे गुगा स्थान ! १ गृगाः सारे गुगा १ गुणक ४ से ७ तक के नुगः (१) नरक गति में ४था प्रपने अपने स्यान के अपने अपने स्थान (१) नरक गति में ४था अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान (२) नियंच गति में ४-५ भार गुरग स्थान के सारे अंगों में (२) नियंज गति में - मारे भी जानना के सारे भंगों में भोग भूमि में था जानना से कोई मुगा. मोग भूमि में या 'गे कोई १ नरम । (३) मनुग्य गति में ४ से ७ जानना (३) मनुष्य गति में ४-६ । बानना भोग भूचि में ज्या भोग भूमि में ४या (५) देवगति में स्वा (१) देवगति में में ज्या २जीव समास १ मंशी पर्याप्त १समाग १ समास । १ संज्ञा पं० अपर्याप्त समान १ समास संगो पं० पर्याप्ति चारों गतियों में हरेक में को० नं०१६ से १६ को नं०१६ से. (१) नरक मनुष्य-देवालि को०१-१- कोनं०१६-१.८अपर्याप्त १ संजी पंचेन्द्रिय पर्याप्त । देखो १९ देखो १६ देखो ! १६देखो जानना १मजी पं० अपर्याप्त को नं०१६ से १९ देखो ! जाना ' को नं. १६-१८-१९ : देखो (तिर्वच गति में १ समास . १ समास भोस भूमि में नजी ५० कोन०१७ देखो कोनं०१७ देखो अपर्याप्त जानना : को०० १७ देखो ३ पर्याप्त १ भंग भंग को०५०१ देखो (1) चारों गनिगों में हरेक में को० नं. १६ में १२ को०नं०१६से : (१) नरक-मनुष्य-देवगति को० न०१६-१८- कोनं १६-१८ ६ का भंग - देखो १९ देखो : म हरेक में १६ देखो कोन०१६ मे १६ देखो | 2 का भंन ' को० नं०१६-१८-१६ | देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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