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________________ २४ २५ २६. २७ २५ २६ ३० ३१ ३२ ३३ ૪ ( ६२६ ) पत्र हुन् को० नं० १८१६ देखो। बंध प्रकृतियां-४ से ११ गु० में क्रम से ७७-६७-६३-५९-५६-२२-१७-१ प्र० का बंध जानना | को० नं० ४ से ११ के समान जानना । प्रकृतियां ६४४ कु० के १०४ में से नरक-तिर्यच मनुष्य गत्यानुपूर्वी ३, नरक गति १, तिच गति १, नरकायु १, तिचा १. ०मिश्रकार्य योग १. स्त्री वेद १, नपुंसक वेद १, ये १० घटाकर ६४ प्र० का उदय जानना । ५ मे ११वे गुण० में क्रम मे ८७-९१-७६-७२ - ६६-६०-५६ प्र० का उदय जानना । प्रकुतिया से १२ वे गुगा० में क्रम से १४६-४७-१४६-१४६ - १४२ - १४२-१४२-१४२ ० का सत्व जानना । संख्यात जानना सख्या क्षेत्र- लोक का असंख्यातवां भाग जानना | स्पर्शन लोक का पसंख्यातवां भाग जानना काल-नाना जीवों की अपेक्षा एक समय से वर्ष पृथक्त्व जानना । घसरताना जीवों की अपेक्षा एक समय से वर्ष पृथक्त्व जानना द्वितीयोपशम सम्यक्त्व न हो स - एक जीव की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त मे एक जीव की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त से जाति (योनि) - ८ लाख योनि जानना । (१४ लाख मनुष्य की ४ सास देवों की ये १० लाख जानना कुल ४० लाख कोटिकुल जानना । (मनुष्य के १४, देवगति के २६ ये ४० लाख कोटिकुल जानना । - मुंह जानना । देशोत् श्रनुद्गल परावर्तन काल तक
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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