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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०८१ भव्य में १२जान पोनं० २६६वो : (२) निर्यच गति में सारे भंग १ मंग (२ नियंव गनि में मारे मंग १ भंग २१-२६.२५-२५-२१-१७-कोनं १० देखो कोनं०१७ दयो ३-२३-२५-२५-२३- कोनं १७ देसो कोनं०१७ देखो २४.०० के भंग २५-२४-११ के भंग को. नं०१५ देखो को० १७ देखो (३) मनुष्य गति में मारे भंग भन (1) मनुष्य गति में गारं मंग . मंग २५-२१-१७-१३-११-१.को नं०१८ देवो कौन-१८ देखो २५-२६-११-०-२४-१६ को १८ दंपो को नं. १ देखो के भंग २८-30 के भंग | कोनं०१८ देग्मी को न.१८ देखो (1) देवगति में नारे भंग भंग (४) दंवगति में मा मंग भा । ०४-२४-१२३-१६-१६ को ०१६ सो कोनं०१६देखो २५.२०-२३-१६.१६ का० नं०१६ देतो कोल्नं.१६ देखो के भग केनग को० नं०१६ग्यो को नं. १६ दबा पारेन । न गारे मंगान (१) गनिने कौन दे को नं०१६ नेवो कृपानि जान मन: पर्यत जान ये कोनं १६ घा | (नियन मनि भंग ज्ञान (१) नरक गति में सारे मंग जान - - -३- के भंग को न०१६ सो गोनं. १७ दंनो २-३ के भंग को नं. १ दखो कोनं १६ देखो को. नं.१७ देगे को. नं. १५ देवो (3) मनग्य गनि में मारे भंग । मान नियंव गति में भंग । १ज्ञान ३- ..३.८.१-३-12 भगको ग १५ देगो कोन..१८ देखो --2-३ के भंग | कोनं १७ देखो कोमं०१७ देखो वो नं. १ देना को नं. १७ देखो (४) देवगति मारे भंग जान (8) मनुरुप गति में । मारमंग १ ज्ञान ३-२ भग को नं. १६ देखो को देखो..........! के भंग को नं. १८ देखो को १८ देतो कोर नं. १६ दग्नो को नं. १८ देवा । देयगति में मारे भंग ज्ञान -२ केभंगको० नं०१३ देखो को देखो को नं.१ दलो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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