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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक न० २६ संजी पंचेन्द्रिय जीवों में ५३ । (४) भोग भूमि म-निम चगति में ११ से १८ नत्र के और मनुष्य गनि में . १० मे १७ । ५०-४५-४१ के नंग को० । १ मे १६ " . न०१७-१८ के ममान भंग जानना जानना २३ भाव सारे मंगभंग | सारे भंग १ भंग (१) मौदामिक भाव ' (१) र गति में सूचना-पन । अपने अपने | भवपि जान १, मनः । मुचना- । पर्याप्तवत् २ उपशम मम्कन २६-२४-२५-२८-२७. अपने स्थान के स्थान के १५- पर्यय जात, उपशम | पर्याप्तवत जानना ' जानना और डागम बाग्त्रि ये || के भंग को नं०१५ । सारे भग :-१६-१३ के चारित १. संयम:-नवम ! ये३ जागा के गमान जानना हरेक भंगों में में चषि ये ४ घटाकर । (२)मायिक भाव ६. 29-१-१६-७ पोई भंग । वाधिक ज्ञान, प्राधिक के भंग जानना का जानना नरक गति में नारे मंग भंग दचन, साबिक मग्य | नं १८ नोभ ग ५.. भंग को १७-१७ के भंग ५-20 के हरेक व, क्षायिक पारित, निर्यच गति में सारे भंग -१६-१६-१८के समान | जानना 'भंग में से कोई धायिक दान, शाबिक ३१-२६-३०-३२-२६ के भंग १७-१६-१६-१-१७.१७के हरक । १ भंग जान, स.विक भोग, कोन १७के समान १ भंग जान्नः । भग में गे कोई (२) निर्यच रति में सारे भग १ भंग सायिक उपभोग, आदिक को नं०१८ देखो, १ भग |२४-०५ के भंग को ०१५-१६ के भंग १७.१६ के हरेक बीये ये जानना (3) मनुष्य गति में | मरे मंग । १ भंग | १७ में न जानना ! जानना ,नंग में से कोई (8) सोपशम (मिथ 17-08-३०-३३-३० १७-१-१६-27-12-१६-१६ | १-१ भंग भाव ८. कृमनि-नि- १-७-२१-२६-२६-१७-२७-१७-23-१-१:-१:- (2) मनुष्व गनि में गारे मंच | १ मं कुधवधि (विभंग) गे २८-::-०६-२५-11-23-१५-१६- १-2013-20-12-20-02-१४ १७-१६-१७-13-28-१६-१७कमान, .. -२१-२०-१४- '१५-५-११-१३ -१६-११- के भग को० नं. १६ के १४ के भंग जानन १७-१४ के हरेक मानि-चन--धि-मन: . १३ फे भन को नं. १८ । भंग जानना ५-१४-११ के गमान जानना भंग में में कोई पर्यय ज्ञान यजाम के ममान जानना को नं. १ चोक मंगमें गकाई 12.१ भंग जानना भावनि- न -१ भंग जानना (1) देव गनिम सारे भन१ मंग अवधि शंन ३ दर्शन, देव गनि , मारे भग भ ग २६-२४-०६-२५---१७-१६-१७के भंग १५-१६-१७ के दान-नाम-मोग-उपमान .:-२३-01-1-22- १७-१५-१६-१ 15-2:-१६.१०२३-२१-२६-२६ के जानना हरेक भंग में से वीर्य 12 जयोपचम 37-२६-२६-४-२- : के भंग जानना कहरेक भंग में गे भंग को०१६ समान कोई भंग सब्धि. क्षयोपशम वेदत्रः) 2-0६-२५ के ग को की नं०१८ देखो कोई १ भंग | जानना नं.३६ के समान ज नना । जानना
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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