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________________ सो ये सब परिणाम योगस्थान या घोटमान योग समझने, द्रव्य फर्म = ज्ञानाबरणादि रूप पुद्गल द्रव्य का पिट ( मा २२१ देखो) __ द्रव्य कर्म है । (गा ६ देखो) व्य लेश्याम वर्ण नाम कर्म के उदय से पारीर का बय- सामान्य अन्तर को चम कहते हैं। जो वर्ण होता है उसे द्रव्य लेश्या कहते हैं । धूलिका जो कहे हुये अथवा न कहे हुये बा (गा० १४६ देखो) विशेषता से न कहे हुये अर्थ का चितन करना उसे चूलिका द्विधरमप्रतिम के पिछले उपांत्य को द्विधरम कहते हैं । ( गा० ३९२ देखो) कहते हैं। के.गत प्रतर-जगत श्रेणी को जगत् श्रेणी से व क देवमति १, देवगत्यानपूयं १, वक्रियिक गुणाकार करने से जो संख्या पावेगी उसे जानना अथवा हारी..प्रियिक अंगोपांग १, ये ४ जानना । एक एक स्पर्धक में वर्गणाओं की संख्या उतनी ही प्रति देवतिक = देवगति १, देवगत्यानुपूश्य १ ये : जगत श्रेणी के असंख्यातवें भाग प्रमाण है और एक एक जानना। वर्गला में असंख्यात जगत प्रतर प्रमाण वर्ग है । : वेष मनन्तानुबध्यादि क्रोष ४, मान ४, अरति(गा० २२५ देखो शोक २, भय-जुगुप्सा २, इनके जन्म से जो भाव होता है जगत् श्रेणी लोक की चौड़ाई ७ राजु है इस राजु उसे द्वेष कहते हैं । के रेषा को जगत् श्रेणी कहते हैं। धर्म कथा= प्रथमानुयोगादि शास्त्रों को धर्म कथा जोब समास-जिन सदृश धर्मों के द्वारा अनेक जीवों कहते हैं । ( मा० ८८ देखो ) का संग्रह किया जाय, उन्हें जीव समास कहते हैं। ध्रव ष-जिसका निरन्तर बंध हुमा करे उसको तिर्यक एकाबा = तियं भतिक २, एकेद्रिादि जाति जानना । ४, प्रातप १, उद्योत १, स्थावर १, सूक्ष्म १, साधारण नरकहिक-नरकगति १, नरकगत्यानुपूर्व्य १ ये र १ये ११ जानना। जानना । तिर्यद्विक तिर्यंचगति १, तियंचगत्यानुपूश्यं १ ये मक मंध तत्काल जो नया बंध होता है उसे २ जानना । आनना। तेजोकि तेजस शरीर १, कारण शरीर१ये २ नाम कर्म-जो अनेक तरह के मिनोती अर्याद कार्य जानना। बनावे वह नाम कम है। असनष्क =स १, बादर १, पर्यात १, प्रत्येक १ ये ४ जानना। नारक चतुष्क-नरकगति १, नरकगत्यानपूर्थ १, प्रस क्शक=त्रस १, बादर १, पर्याप्त १, प्रत्येक १, बंक्रियिक परीर १, क्रियिक अंगोपांग १, ये ४ स्थिर १, शुभ १, सुभग १, सुस्बर १, प्रादेय, यक्षः जानना । कीर्ति १ ये १० जानना । नारक षट्क=ऊपर के नारक चतुष्क और = त्रस १, बादर १, पयात १ प्रत्यक, वैऋियिक बंधन १, वैक्रियिक संघात १ ये ६ जानना । स्थिर १, शुभ १, सुभग १, सुस्वर १, मादेय १,ये 8 ___ निवेश-वस्तु के स्वरूप या नाममात्र के कथन करने जानना। . को निर्देश कहते हैं। वध्य =बंध प्राप्त पुद्गल समूह को द्रव्य कहते हैं। गा. ९२२) निष्ठापा = पूर्ण करना इसको निष्ठापन कहते हैं।
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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