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________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ६० मति-श्रुत ज्ञान में . () देवगति में मारे मंग १ मंग (४) देव यत्ति में सारे भंग मंग ४१-४०-४० के भंग को० नं.१६ देखो | कोन०१४ | ३३.३३-३३ के मंगको . नं०१६ देखो , कोन०१६ को० नं.१६ देखो देखो को० नं०१६देयो देखो सारे मंगभंग ३ सारे भंग उपगम सम्यक्त्व १, (१) नरक गति में को नं. १६ देखो | को नं. १६ उपशम चरित्र १, उपशम चारित्र २६-२५ के भंग को. नं. देखो । शायिक चरित्र मायिक सम्यक्त्व १, | १६ के २८-२७ के हरेक मयमासयम १, स्त्रीलिंग क्षायिक चारित्र, । अंग में नासिर १. ये ४ घटाकर ३३ मनि-श्रत ज्ञान में से में से जिसका विचार करो भाव जनना जिसका विचार करो, प्रो १ज्ञान छोड़कर (१) मरक गति में सारे मंग मन । १ मंग भो १ ज्ञान, दर्शन २, । दोष २ ज्ञान घटाकर २६ | २५ का भंग कोन कोन १६ देखो ! को.नं०१६ लब्धि ५ वेदक स०१, २५ के भंग जानना १६ के २७ के मंग में ये देखो संयमासंयम १, सराग- (२) तिर्यच गति में सारे भंग १ भंग पर्याप्तबन शेष २ ज्ञान संयम १, गति ४, ३७-२७-२७ के भंग को० को० नं. १७ देखो को नं०१७ घटाकर २५ का भंग कपाय ४, लिंग, । नं० १७ के २-२६-२६ दलो जानना लेश्या ६, प्रमंयम १, के हरेक मंग में से पर (२) तिर्यंच गति में सारे मंग भं ग अज्ञान १, प्रमिजन्व १, के समान शेष ३ जान भोगभूमि की अपेक्षा को० नं.१७ देखो | कोनं०१७ जीवन्त १, भव्यत्व १, घटाकर ३०-२७-२७ के २३ का भंग को० नं०१७ के ये ३७ भाव जानना मंग जानना २५ के मंग में से पर्याप्न(३) माय गति में सारे भंग १ मंग । चत दोष २ ज्ञान घटाकर ३१-२८ के भंग-को नं० को नं०१८ दलो को० नं०१८ २३ का भंग जानना १८ के ३३-३० के हरेक देखो (३) मनुष्य गति में सारे मंग भं ग भंग मेसेपर के समान २८.२५-२३ के मंग-को को नं०१८ देखो | को नं. १८ शेष २ जान घटाचार ३१ नं०१८के ३०-३७-२५ । २८ के मंग जानना के हरेक भंग में से २८ का मंग-को० नं. पर्यासका शेप २ शान १८ के ३१ के मंग में से पटाकर 2-२५-२३ के ऊपर के समान शेख ३ भंग जानना जान घटाकर २८ का भंग जानना | देखो । देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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