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________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५५ संज्वलन लोभ कषाय में १४-१३ के हरेक भंग में से संज्वलन काघ-मानमाया ये कषाय घटाकर ४६-४३-३६-३४.१६-१७ १६-१३-१.-११-१० के भंग जानना १० का मंग-को नं. १८ के १२ के मंग में से मान-माया ये २ कषाय घटाकर १० का भंग जानना १० का भंग-को० नं. न. १८ के ११ के भंग में से माया कवाय १ घटाकर १० का भंग जानना १०-१० के मंग-को० नं० १८ के समान जानना ४७-४२-३८ के भंग भोगभूमि की अपेक्षा को० नं. को.न. १० के ४४२६-३-१२-४३-३८-३३ के हरेक मंग में से संचलन कोव-मान-माया ये ३ कषाय पाकर ४१-३६-३०-8-30-३५३० के भंग जानमा (४) देवगति में सारे मंग । १ मंग ४०-३५-३०-३६-३४-३०-| को० नं०१६देखो को० न०१९ ३० के अंग को नं. ! देखो १० के ३-२८-३३-१२३७३३ ३३ के हरेक भंग | मे से मज्वलन कोध-मान! माया ये कपाय पटा कर ८०-३५-३०-३१ २४-10-३0 के भंग 1 जानना - - - - हरेक मंग में से कोष-मान माया ३ कषाय घटाकर ४७-४२-३८ के मंग जानना (४) देवगति में | सारे भंग १ भंग ४७-४२-०८-४६-४१-३७-को०११ देदो | कोनं०१६ ३७ के मंग-को.नं.१६ के ५०-४५-४१-४६-४४. ४०-४० के हरेक भंग में से
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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