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________________ चौंतीस स्थान दर्शन स्त्री वेद पुरुष वेद ये तीन वेद है। ११ कषाय ४ १२ ज्ञान ८ १३ संयम ४ अनंतानुबंधी अप्रत्या ख्यान | पर्याप्तवत् अकषाय प्रत्याख्यान, संज्वलन, क्रोध भान-माया-लोभ ये चार, कषाय होती हैं। ८ कुमति, कुवत, कुअवधि- | कुअवधिज्ञान घटाकर शेष ७ । केवल जान ज्ञान, मति, श्रुत, अवधि, | जान पर्याप्तवत् मनःपर्यय और कंवल ज्ञान ये ८ ज्ञान होते हैं। ७ असंयम संयमासंयम, संयम, सामायिक, परिहारविशुद्धि । संयमासंयम, परिहारविशुद्धि, | संयम,संयमासूक्ष्म सांपराव और यथा सुक्ष्म सांपराय घटाकर शेष ! संयम,असंथम ख्यात ये ७ होते हैं। | ४ संयम पर्याप्तवत् रहित ४ चक्षदर्शन, अचक्षुदर्शन, पर्याप्तवत् केवल दर्शन अवधिदर्शन और कंबल दर्शन ये ४ होते हैं। ६ द्रव्य और भाव के भेद | पर्याप्तवत् अलेश्या से छह लेश्याएं होती हैं। २ भव्य और अभव्य जीव । पर्याप्तवत् अनुभय १४ दर्शन ४ १५ लेश्या ६ १६ भव्य २ १७ सम्यक्त्व ६ ६ सम्यक्त्व मिथ्यात्व, सासादन मिथ घटाकर शेष, पर्याप्त- क्षायिकमिध, उपशम. क्षयोपशम व मम्यक्त्व और क्षायिक ये छह होते । १८ संशी २ अनुभय १९ आहारक २ २० उपयोग २ २ संज्ञी और असंजी ये दो । पर्याप्तवत् होते हैं। १ आहारक आहारक और अनाहारक २ साकार उपयोग और पर्याप्तवन् अनाकार उपयोग भी होते । युगपत उपयोग
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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