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________________ चौंतीस स्थान दर्शन वचनबल का अभाव हो जा ने पर कायबल, आनापान, और। आयु के तीन प्राण होते हैं। २ प्राण तेरहवे गुण स्थान के अंत में क्रायबल और आय ये दो प्राण होते हैं। १ चौदह मुंग स्थानमें केवल एक आय प्राण होता है।। क्षीण संज्ञा ५ संज्ञा ४ आहार, भय, मंथन और परिग्रह संज्ञा ये चार है। ६ गति ४ ४ नरकगति,तिर्यंचगति,मनुष्य ४ पर्याप्तवत् जानना __ गति, देवगति ये चारगति | सिद्ध गति ७ जाति ५ ८ काय ६ ९ योग १५ ५ एकेन्द्रियादि पांच जातियां | ५ पर्याप्तवत् जानना । अतीत जाति होती है। ६ पृथिवीकाय आदि छह | ६ पर्याप्तवत् जानना । अतीत काय काय होते है। ११ मत्यमनोयोग, असत्यम- १ औदारिकमिथकाय योग, | अयोग नोयोग, उभयमनो योग, २ वक्रियक मिश्रकाय योग, अनुभय-मनोयोग, सत्य- ३ आहारक मिथकाय योग, वचनयोग, असत्य वचन तथा कार्माणकाय योग योग, उभयवचनयोग, यह ४ होते है। अनुभय वचनयोगऔदारिक काययोग, वैक्रियककाय योग आहारकाय योग यह ११ योग । अपगत वेद १० वेद ३ नपुंसक वेद
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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