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________________ [ ७०२ ] चौबीस - दण्डक (दौलतराम कृत) दोहा वन्दों वीर सुधीरकों, महावीर गंभीर । वर्धमान सम्मति महा, देव देव श्रति वीर ॥१॥ गत्यागत्य प्रकाश के, गत्यागत्य व्यतीत । अदभुत प्रतिगति सुगति जो, जैनसूर जगदीश ||२| जाकी भक्ति बिना विफल, गये अनन्ते काल । गणित गत्यागति घरी, कटी न जग-जंजाल ||३|| चौबीसों दण्डक विषं धरी अनन्ती देह | नाही लखियो ज्ञान घन, शुद्ध स्वरूप विदेह ॥४॥ जिनवाणी परसदतें, नहिये श्रातमज्ञान । दहिये त्यागति सर्वे गहिये पद निर्वाणा ॥ ५ ॥ चौबीसों दण्डकतनी, गत्यागति सुन लेव । सुनकर विरक्त भाव धरि, चहुँ गति पानी देव ||६|| छन्द - चौपाई पहिलो दण्डक नारक लनों, भवनपती दस दण्डक भनी । ज्योतिष व्यन्तर सुरगति दास, धावर पंच महादुख रास ||७|| विकलत्रय प्ररु नर तिर्यंच, पंचेद्रिय धारक परपंच | चौबीसों दण्डक कहे, अब सुन इनमें भेद जु लहे ||८|| नारक की गति प्रागति वोय, नर तियंच पंचेन्द्रिय होय । जाय प्रसेनी पहिला लगे, मन बिन हिंसा करम न पर्गे ॥६॥ सर्प दूजे लग जाहि तीजे लग पक्षी शक नाहि । सर्प जाय चौध लग मही, नाहर पंचम आगे नहीं ||१०|| नारी लग ही जाय, नर अरु मच्छ सातवे थाय ये तो नरकतनी गति जान, अब प्रगति भाषी भगवान् ||११ ॥ नरक सातवें को जो जीव, पशुगति ही पावे दुख दीव | और नारकी षष्ठ सदीव, दो गति पावें नर पशु जीव ॥ २॥ पट्टे को निकसो जु कदाप सम्यक्त्वा होवे निष्पाप । पंवम को निकसो मुनि होय, चौथे को कवलिह जोय ॥१३॥ तृतीय नरक को निकलो जीव, तीर्थंकर है है जग पीत्र | ये नारक की गत्यागत्य, भाषी जिनवाणी में सत्य ॥ ११४ ॥ तेरह दण्ड देव निकाय, तिने भेद सुनो मन नाम । नर तिसच पंचेन्द्रिय बिना, औरन के सुरपद नहि गिना ||१५|| देव मरे गति पंच लहाय, भू, जल, तरुवर, नर, पशु थाय । दुजे सुरंग ऊपरले देव, थावर है न कहें जिन देव ॥ ६ ॥ बहस्रार तें ऊंचे सुरा, मरकर होवें निश्चय मरा । नर पशु भोगभूमि के दोय, दुजे सुरंग परे नहि होय ॥ १.७ ॥ जाय नहीं यह निश्चय कहो, देवनि भोगभूमि नहि नहीं । करम भूमिया नर अरु डोर, इन बिन भोगभूमि नहिं और
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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