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________________ स्थान १ पोतोस स्थान दर्शन १ गुगा स्थान २ जीव समाज ३ ति त्रास 2 ९ बांग ५ संभा ६ गति • इन्द्रिय जाति काम सामान्य आलाप वेद काम १२ ज्ञान १३ मं को नं. १ देखी । की नं. १ देखो को नं० ५ देखा को नं० देख ܕ पर्याप्त नाना बीवों की अपेक्षा ३ १ सूक्ष्य सांपराय गुगा स्थान १ संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त अवस्था कामं को नं० १८ के मृजिव ܐ १० का मंच की नं० १८ के मुि १ परिग्रह संज्ञा जानना १ मनुष्य गति जानना १ पंचेन्द्रिय जाति जानना १ त्रमकाय जानना ६ ६ का भंग को नं० १८ के मुजिन • यपगत वेद जानना १ मुध्म लोभ जानना 5 का भंग को नं० १२ के मुजिब १ सूक्ष्म पराय सब जानना () कोष्टक नं. १० एक जोव के नाना समय में १ १ १ १ भंग ६ का मंग १ भंग भ १ मंग ३ का भंग १ १ भग ६ का भंग ० १ भग ४ का मं सूक्ष्म सम्पराय मुन स्थान अपर्याप्त एक गांव के एकसमय में L I १ मंग ६ का भंग १ मंग १० का मंग ! ! k १ योग का भंग D १ योग जानना १ जान के संग में से कोई १ जान जानना ६-७ सूचना । इस सूक्ष्मसांपराय गुण स्थान में प्रयाप्त अवस्था नहीं होती है
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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