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________________ ( २३ ) कोष्टक न० ३३ चौतीस स्थान दर्शन त्रसकायिक जीवों में १०। ४ प्रारण सारं भंग १ भंग | सारे भंग १ भंग को.नं.१ देखो चारों गतियों में हरेक में चारों गलियों में- अपने अपने स्थान चारों गतियों में हरेक में पर्याप्तवत् जानना पर्याप्तवत् जानना १. का भंग को० नं. २६ के हरेक में के भंगों में से का भंग को० नं० २६ के के समान जाना ७ का भंग कोनं कोई १ भंग | समान जानना मप्य गति में । २६देखो | जानना मनुष्य गति में पर्याप्तवत् 1-1 के मंग को० नं. १८ ने अपने स्थान के | २ का भंग की नं. १ , सारे भंग टेस्रो निर्वच गति में तिर्थव गति में 1-८-७- के भंग ७-६-५-४के भंग को नं०१७ के समान । को० नं० १० देन्डो ५नेजा । सारे मंग ! ,मंग । ! मारे मंगभंग को००१ देशो। चारों गनियों में हरेक में चारों गतियोम-हरेक में सपने दापन स्थान कारों गतियो म हरेक में पर्याप्तवत् जानना र्याप्तवत् जानना का भंग को० नं० १६ से १९४ का भग को के भंवों में मे | ४ का भंग को० नं २९ के समान जानना नं० २६ देखो | काई भग | के समान जानना मनुष्य गति में अपने अपने स्थान के मनुष्य गनि में ३-२-१-१-० के भंग . सारे भंग जानना । (0) का भंग को नं.१८ को नं.१% के समान नियंच गति में निर्यच गति में ४ का मंगजीनिय मे ४का भन्न यमंत्री पंचेन्द्रिय कके जीवों पर्याप्तवत् भागना म४ का अंग जानना को.नं. १७के समान जानना ६ गनि १ गति पनि १ गति फोन: । देही चारों गति जानना म में कोई १ गति! काई गति चारों गतियां जानना में से कोई १ गति। कोई १ गति ७ इन्द्रिय मानि४ | १ जानिनानि जाति । अति कलिय जाति । च.में गनियों में हरेक में ४ पे में कोई में से कोई चागे रनियों में हरेक में पर्यावत जानता सब जानना घटाकर दोष () । मंत्री पंचेन्दिव जाति , जानि जानना | जाति जानना ।यंजी पंचेन्दिय शानि। को नं. ६ के समान पर्यापवत दानना तिन गति | निच गति में न जानि पयांमवत् जानना
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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