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________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५ देश संयत गुण स्थान सिम ३, नुम लेश्या २, (२) मनुष्य गात में ३ का भंग सामान्य के ३१ प्रशान १, प्रसिदत्व १, । के भाग में से तिर्यच गति ? घटाकर 3 का जीबुत्व १, भव्यत्व !, ये! मग को० न०१८ के समान जानना ३१ भाव जानना सारं भंग वा० १८ के समान को० न०१८ देखो २८ अवगाहना--कोनं०१७-१८ देखो। बध प्रकृतियां–७ को नं. ४ के ७७ प्रकृतियों में से अप्रत्यास्यान कषाय 1, मनुष्पतिक २, मनुष्य-मायु १, प्रौदारिकद्विक २, बजवृषभनाराच महनन १, ये १० पटाकर ६७ जानना । उदय प्रकृतियां-७ को नं. ४ के १०४ प्रकृतियों में से मप्रत्याख्यान कषाय ४, नरकद्विक २. नरकायु १, देवद्विक २, देवायु १, बंक्रियिद्विक २, दुभंग १, अनादेय १, प्रवनाः कीर्ति १, मनुष्यगत्यापूर्वी १, तिथंच गत्यानुपूर्वी १, ये १७ प्रकृतियां घटाकर ८७ जानना । सत्व प्रकृति-१४७ उपशम सम्यकद की अपेक्षा नरकायु १, घटाकर १४८-१-१४७ जानना । सूचना:-यदि नरकायु सत्ता में हो तो उसे पंचम गुण स्थान प्रहरण नहीं कर सकता है । १४०-क्षायिक सम्यक्त्व की अपेक्षा को नं. ४ के १४१ प्रकृतियों में से नरकायु १ घटाकर १४० । संख्या-पल्य के प्रख्यात भाग प्रमाण जानना। क्षेत्र-लोक के वसंख्यातवें भाग प्रभारण जानना । स्पर्शन--माना जीवों की अपेक्षा लोक के असंख्यातवे भाग प्रमाण जानना। एक जीव की अपेक्षा ६ राजु मध्य लोक में भरणांतिक समुहात बाला १६वें स्वर्ग की उपपाद शय्या को स्पर्च कर सकता है। काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना : एक जीव की अपेक्षा अन्त मुहूर्त से लेकर देशोन एक कोटिपूर्व तक देशव्रत में रह सकता है। अन्तर नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं । एक लोव की पेक्षा अन्तमुहर्त से देशोन अर्घ पुद्गल परावर्तन काल गये पीछे निश्चय रूप से देशव्रत प्राप्त हो सकता है। जाति (योनि)-१८ लाख जानना (तियंच पंचेन्द्रिय पशु ४ लाख, मनुष्य १४ लाख ये १८ लाख जानना) कुत-५७॥ लाख कोटिकुल जानना । (पंचेन्द्रिय तियंच में ४३ लाख कोटिफुल, और मनुष्य के १४ लाख कोटिकुल से ५१ लाख कोटिकुल जानना)
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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