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________________ चौतीय स्थान दर्शन कोष्टक नबर १२ क्षीण कषाय गुण स्थान में ० स्थान नाम सामान पालाप पर्याप्त अपर्याप्त नाना जोवों का मरक्षा गफ जोब के नाना समयम एक जीव के एक समय में १ गुण म्पान २ जीव समास लोग जपाय (मोह) गुरण स्थान मर्जः पदिय पर्यात प्रवस्था मूचना-इस क्षीरपकषाय (मोह) iगुगा में अपर्याप्त घवस्या नहीं होती है। की. देवा . भंग का रंग १ भंग .का भग बा भग १ मंग १. का भंग को न. १ देखो का मंग का नं. १८ के जिर १० १. का भंग को न०१८ के मुजिन (0) अपरत मंशा जानना , मनुष्य गति जानना , पंचेन्द्रिय जाति जानना १ सकाय जानना . हन्दिम जाति . काय १ योन का नं. ५ दमा का भंग को न १ के मुजिब १. भंग १का भंग के अंग में से कोई यांग जानना । 10)प्रपन वेद जानना (0) प्रकवाय जानना "कवाय १२ ज्ञान कानदया का भंग को नं०१८ के मुभिर जान के भंग में में कोई । मान जामना 'यदान वयम जानना १. दर्शन की नं. ६न्या का मग को नं०१८ के मुजिब ३का भंग दोन | ३ के भंग में से कोई दर्शन जानना : १५ लेग्या शुक्न लेण्या जानना
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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