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________________ चौतीस स्थान दर्शन (११० ) कोष्टक नं०२४ स्थान सामान्य प्रालाप । पर्याप्त एक जीव के नाना एफ जीत्र के का समय में 1 समय में चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त ।१ जीव क नाना नाना जीवों की अपेक्षा समय में नाना जीव की अपेक्षा एक जीज के एक समय में १गुण. १ गुण स्थान २ मिथ्यात्व, सासादन मिथ्यात्व गुरण मिथ्यात्व, सासादन निना | कोई एक गुण २जीवसमास २ चतुरिन्द्रिय प. अप० । १ले गुण में १ चतुरिन्द्रिय पर्याप्त १ले २रे गूण में १ चतुरिन्दिय अपर्याप्त मनपर्याप्ति घटाकर (५) भंग ३का मंग ५ का भंग का भंग । कोम ०२देम्बो १ भंग का भंग को देखो १ले नरग में । ५ का भंग को. नं१७ | के समान जानना ४प्रामा कर मन घटाकर (८) भंग ६का मंग का भंग का भंग रैले मुगाल में ८ का भंग को० नं०१७ | के समान जानना १ भंग E का भंग | वचनबल, स्वासोच्छवाम । ये २ घटाकर (६) ले रे गुग्गल में का भंग को नं. ५सजा को. नं। देखो । १गभंग ४ का भंग का भंग । १मंगभग ४ का भंग | ४ का भंग १ने गुरण में ५ का भग कोई नं. १७ . के ममान जानना ने गुगण में १ले २रे गुग में ४ का भंग पर्याप्नवत ले २रे गुरण में । १
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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