SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 857
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८२३ शुद्धता पृष्ठ पंबित अधुक्ता ५३३ ९-१० का, ३ में कर्मभूमि की अपेक्षा तीनो ५३४ ५ का ६ में १६-१८-१९ ५३४ १२-१३ का. ३ में कर्मभूमि की अपेक्षा तीनो का, ८ में मारेभंग का. में कर्मभूमि की अपेक्षा तीनो का, ८ में को नं. १६ ५३५ १९ .३ में २ नरक और कर्मममि की अपेक्षा तिर्यच और मनुष्य इन डोनो। १६-१९-१८ १ लरक और कर्मभूमि की अपेक्षा तिर्थच मनुष्य । १ नरक और कमभूमि की अपेक्षा तियंच मनुष्य । को. नं १७ ५५ १५ ५३५ २३ ५३६ ११ ५३६ ४ का. ६ में ओ. मिथ काययोग मिथकाय योग ? का ६ में ३४-२५-३८ का. २ में असंयमासंयम का, ४-५ में औ काययोग १वं. का योग १ ३४-३५-३८ असंयम ३ रे का. मैं के २६ आदि ,,,मगो के सामने। इस प्रकार मिन्ह लिख लेना २९-३०-३२ ५३७ ५३९ १ २ का. ३ में ९-३०-३२ का. ३ में कर्म भूमि की अपेक्षा. ५३९ ९-१० का. ३ में कर्मभूमि की अपेक्षा १ नरक मनुष्य को ३ में कमममि की अपेक्षा इस पंक्तिको इसके नीचे -४ पक्तिके बीच पढ़ा जाय। १नाक और कर्मभूमि को अपेक्षा मनुष्य गतिमें। ऊपर के ममान यहां भी लिख लेना ५४. २ १नरक और कर्म भूमि की अपेक्षा मनुष्य तिथंच गतिमें हरेक में। १४. ५४१ २६ २ का.६ में का का. ३ में कर्मभूमि की अपेक्षा ५४५ ५४१ ४ ५ का ६ में एक एक जानना का. ३ में कर्मभूमि की अपेक्षा १ नरक और कर्मभूमि की अपेक्षा तिर्यंच और मनुष्य ये ३ मनि जानना । एक एक गति जानना. १नरक और कर्मभूमि की अपेक्षा मनुष्य गति । नरक और कर्म भूमि की अमेभा मनुष्यगति में भौर ५४११ कामें कर्मभूमि की अपेक्षा
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy