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________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०३२ वनस्पतिकायिक जीव में जनापतिकारिक जीवन में २२ प्रायव३८ को० नं०२१ देखो ३६ को० नं० २१ के समान को नं० २१ के समान १ सारे भंग को नं. १ देखो १भग को २०२१ देखो १मंग को नं. २१ । देखो १ मंग को न२१ २३ भाव को नं० २१ देखो सारे भंग १अंग | कोनं० २१ को नं. देखो १ मंगभंग को २०२१ को.नं. देखो को नं० २१ के समान को.नं.१ के समान १ | २४ " ur . अवगाहना-लब्ध्य पर्यातक जोव की जघन्य अत्रमाहना धनांगल के असंख्यातवें भाग से लेकर उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार (१०००) योजन तक (कमल की) जानना बंध प्रकृतिया-१०१-१०७ को नं० २१ के समान जानना । रय प्रकृत्तियां-७१ को न के समान जानना। सत्य प्रकृतियों -१४५-१४३ को नं. १ के समान जानना। सन्या-अनन्नानन्त जानना। क्षेत्र--सर्वोक जानना स्पर्शन - मनोर जानना ! काल-नाना जीवों की अपेक्षा मकान जानना । एक जीव मादिमिच्या दृष्टि की अपेक्षा क्षुद्रभव मे प्रख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक यदि मोक्ष न जाय तो निरन्तर बनस्पतिवाय ही बनता रहे)। अन्तर--नाना जीवों की अपेक्षा अन्नर नहीं । एक जीव की अपेक्षा क्षुद्रभव मे प्रख्यात लोक प्रमाण काल तक मदि मोक्ष न जाय तो दुबाग ननस्पति होना ही परे। जाति (योनि)-१० लाद जानना । कुल-२५ लाख कोटिबुल जानना ।
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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