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________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ३२ वनस्पतिकायिक जीवों में ११पाय : को० नं० २१ देखो का० नं० २१ ममान सारे मंग ७.६-६ के भंग भं ग २३ मारे भंगों में में को० न०२१ के समान सारे मंग पर्याप्तवत् ज मंग । पर्याप्तवत् । कोई १ भंग १२ जान को० नं. २१ देखो , २ का मंत्र २ में से कोई १ मंग१जान २ का भंग २ में में कोई को० नं.१ के समान १३ संयम को नं. २. देवो इले नु० में १ अनयम जानना तिं गुग्ग० म १ भचक्षु दर्शन करे गुगा० मे. र प्रसयम जानना। लरे गुगा में - १६ दर्शन १५ वेश्या मशुभ लेश्या को नं० २१ के समान ३का मंग १लेश्या ३ में से कौर नं. १ के समान का मंग में न कोई १६ भव्यत्व को. नं०२१ देखो । १७ मम्मस्व कोन०२१ देखी 1सनी २ १ मवस्था । १ मवस्या २ १अवस्था १प्रवस्था को.नं. २१ के यमान ! भव्य प्रभव्य में | दो में से कोई 1 का नं० २१ के समान पाग्नवत् | पर्याववत ने कोई न जानना मम्यक्त्व पन्न गगण. मे को नं०१ के समान को न०२१ देखो | का नं० २१ याच जानना १२ मुग्भ में १से करे गुण- में १ अन मानना १ अपनी जानना दोनों अवस्या , अवन्या ले गृप में को नं० २१ के समान कोन०१दव. को० न० २१ १ भादार जानना | देखो १ भंग | {उपयोग १ भंग उपयोग को न.१ के समान ३ का भंग ३ में से कोई 1 | को० न० २१ के समान ३ का मंग में में कोई १ भंग १ ध्यान द १ भंग १ ध्यान को० नं० २१ के समान + का अंग = में से कोई का० नं० २१ के समान का मंग में में कोई १६ माहारक को.न. २१ देवा । २० उपयोग को० न० २१ देखा । २१ म्यान को न०२१ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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