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________________ कोष्टक नं.१८ मनुष्य गति चौबीस स्थान दर्शन ___ १२ दो में से कोई १ सम्यवरव ज.नना क्षायिक सम्यक्त्व | जानना ४थे वे गुण में का मंग । ३ का भंग उपशम, आयिक, | क्षायीपमिक में जानना ६वे मुगामें | ३-२ के भंग ३ का भंग गौरिककाय । योग को अपेक्षा उपचम, भाषिक क्षयोपशम सम्यक ये ३ का, भद जानना २का मम पाहा क काय : | मोग की अगेक्षारिक, । क्षयोपशम (वेदक) समाकद ये काम जा..ना 1 ने गुशा में का भंग मग उपगन, नादिक भयापान का भंग जानन.. - नेवे गा में २ का भंग : का मंग अधन और स.बिक व्यक्त्व जानना १ौं : देगा में १ क्षायिक म. |१कायत जानदा जान .( भा भूमि में मिथ्या- १ मिनारद जानता गा. . १ मासादन १ गायादन जानना ... ग.प १ मिश्र तीन ममें कोईधे गुण में २का भंग १सम्यकन्न । २का भंग नायिक.! | क्षयोपशम ये का भंग जानना में से कोई १ | वे गुण में । २का भंग सभ्यवरव २ का भंग माहारक | मिश्रकाय योग की अपना क्षायिक, अयोपशम ये २। का भंग जानना १३वे गुरण में क्षायिक मम्म ,का भंग केवन समुपाद की प्रवम्मान ! 'तीनों में से कोई एकदायिक सभ्य ।१ सम्यक्त्व जानना (२) भोग भूमि में । दो में में कोई मिध्याव १ सम्यक्त्व १ मिथ्यान्न जानना २रे गुण न १ मासादत क्षायिक १सासादन जानना । मम्पक्व ४घे गंगा में का भंग जानना २ का भंग क्षायिक, मिथ्यात्व क्षयोपशम ये जानना। मूचना-यहां प्रथमीपशम १ मामादन सम्नमच में मरना नहीं होना है। द्वितीयोम मः ! मित्र में हो भरा होता है मी जानना (दया या. क. का भग | गा० ५.५०-१६०-५६१) १मिल १ सामादन दो में से कोई |सम्यक्त्व का भंग ४६ गुराण में । भग उपद.म. सा..क
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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