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________________ ( ७४० ) ५. आयु कर्म की पति af मनुष्य अपर्याप्तयुत-ऊपर के पंचेन्द्रिय जाति ६. नामकर्म की प्रकृति-गो क. गा० २१७-५२६. के २५ प्रकृतियों में से तिर्य वगति घटाकर मनुष्यगति से ५३१ देखो)। जोड़कर २५ जानना । (१) ३ प्रकृतियों का मन्ध स्थान एकेन्द्रिय अपर्याप्त- (३) २६ प्रकृतिमों का ३रा बन्धस्पान के दो प्रकार युत एक ही है-ध्रुव प्रकृति ६ (तंजस शरीर १. हैंकार्माण शरीर १, अगुरुलधु १, उपघात १, निमरिण १, ला एन्द्रिय र्याप्त प्रारुपयत- मतष्यति अपर्याप्त स्पर्शादि ६) बादर-सूक्ष्म में से १, प्रत्येक-साधारण । के २५ प्रकृतियों मे से त्रस १, अपर्याप्त १. मनुष्यगति १, में से १, स्थिर-अस्थिर में सं , शुभ-अशुन में से १, पचेन्द्रिय जाति १, प्र-सपाटिका सहनन १, मौदारिक सुभग दुर्भग में से १, मादेय-अनादेय में से १, मंगोपांग १ मे ६ घटाकर दोष १६ में स्थावर १, पर्याप्त पश-कीति-पयश कीति में से १, स्थावर १, अपर्याप्त १, १, तिर्यंचगति १. एकेन्द्रियजाति १, उच्छ् वाम १, परघात तिर्यंचद्विक २, एकेन्द्रिय जाति है, औदारिक शरीर १, १, भातप १ ये ७ जोड़कर २६ जानना । कः संस्थानों में से कोई संस्थान, ये सब २३ प्रवाति जानना और 'एकेन्द्रिय अपर्याप्तयत' का अर्थ--जो कोई राकार ए द्रिय पति उद्योसयुत - ऊपर के जीव इन २३ प्रकृतियों को बांधता है, वह जीव मरकर पातप प्रकृति के जगह उद्योत प्रकृति जोडकर २६ एकेन्द्रीय अपर्याप्त हो सकता है और एकेन्द्रिय अपर्याप्त जानना। हो तो वहां इन २३ प्रकृसिमों का उदय होगा। (४) २८ प्रकृतियों का ४था बन्धस्थान के दो प्रकार (२) २५ प्रकृतियों का दूसरा बन्धस्थान है। उसके । ६ प्रकार होते हैं। ला देवतियुत-ब प्रकृतियां ६, स १, बादर ला एकेन्द्रिय अपक्षियुत-ऊपर के २३ प्रकृतियों १, पर्याप्त १. प्रत्येक १, स्थिर-अस्थिर में से १, शुभमें में अपर्याप्त १, घटाकर शेष २२ में पर्याप्त प्रशुभ में से १, यश:कीति-प्रयक्षःक ति में मे १, सुभग १, उच्छु बास १, परवात १ये ३ प्रकृतियां जोड़कर २५ मादेय १. देवगति १, देवगत्यानपूर्ण १, वक्रियिकतिक जानना। २, पंचेन्द्रिव जाति १, समचतुरस्र संस्थान १, सुस्वर १, राद्विन्द्रिय अपर्याप्तयुस-ऊपर के २५ प्रकृतियों में प्रशस्तविहायोगवि १, उच्छ वास १, परघात १ ये २८ से स्थावर १, पर्याप्त १, एकेन्द्रिय १, उच्छ् बास १, जानना । परयात १ये ५ घटाकर शेष २० में प्रस १, अपर्याप्त १, २रा नरकगलियुत-ध्रुव प्रकृतियां ६, अस १, बादर द्विन्द्रियजाति १, असंप्राप्ता सूपाटिका संहनन १, १.पर्याप्त १, प्रत्येक ५, यस्थिर १,अशुभ १, अनादेय १, श्रीदारिक अंगोपांग १ ये ५ जोड़कर २५ जानना। उभंग १, मयश : कीति १, नरकद्विक २, बैकियिकद्विक ३रा क्रन्द्रिय पर्यायुत--वीन्द्रिय अपर्याप्तयुत में २, पंचेन्द्रियजाति १, हुंडक संस्थान १, दुःस्वर १, जो २ प्रकृतिया है। उनमें से द्वीन्द्रिय जाति घटाकर अप्रवास्तविहायोगति १. उच्छवास १, परवात १ ये २८ मीन्द्रिय जाति १ जोड़कर २५ जानना। जानना। ४मा चलरिन्द्रिय अपर्याप्तयुत-ऊपर के श्रीन्द्रिय के (५) २६ प्रकृतिमों का ५वा बन्धस्थान के ६ प्रकार जगह वन्दिय जाति जोड़कर २५ जानना। ५षां पंचेत्रिय अपर्याशयुत-ऊपर के चतुरिन्द्रिय माहीन्द्रिय पर्याप्तयुत--ध्रुव प्रकृनियां ६. स १, जाति के जगह पंचे िदयाति जोड़कर २५ जानना । बादर १. पर्याप्त , प्रत्येक १, स्थिर-अस्थिर में १.
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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